आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम
नए साल में नया नहीं कुछ, वही पुराने लोग यहां।
वही पुरानी बातें हैं, और वही पुराने रोग यहां।।
(1) आंख कान के, वही पुराने विषय भोगने जाएंगे।
खाकर पीकर, नाचकूदकर, घर आकर सो जाएंगे।।
वही पुराना तन है तेरा, वही पुराने भोग यहां।
वही पुरानी बातें हैं और वही पुराने रोग यहां।।
(2) जिसको, जिसकी जो आदत है, फिर से वो दोहराएगा।
अधिक करेगा थोड़ा सा, कुछ नया नहीं कर पाएगा।।
उन्हीं पुराने लोगों से, फिर से होगा संयोग यहां।
वही पुरानी बातें हैं, और वही पुराने रोग यहां।।
(3) बेईमान, ईमानदार हो जाए तो कुछ नया लगे।
नेता,न्याय सही हो जाए, दुष्टों को कुछ दया लगे।।
शिक्षित का सज्जनता से, जो हो जाए संयोग यहां।
नहीं तो वही पुरानी बातें,वही पुराने रोग यहां।।
(4) दुख देते आए हैं जो,वे आगे भी तो दुख देंगे।
नया तभी कुछ हो सकता है, दुखदाता जब सुख देंगे।।
भोगी सदा रहेंगे भोगी, कौन करेगा योग यहां?
वही पुराना तन है तेरा, वही पुराने भोग यहां।।
(5) नहीं कभी था बेईमान, वो बेईमान हो जाएगा।
भ्रष्टाचार बढ़ेगा थोड़ा,नया और हो जाएगा।।
वही पुराने रोग बढ़ेंगे,नए कहां हैं रोग यहां?
वही पुराना तन है तेरा, वही पुराने भोग यहां।।
(6) रे ब्रजपाल देखते जाना, लोगों की तरकीबों को।
भोग बढ़ेगा,रोग बढ़ेंगे, देंगे दोष नसीबों को।।
भोग का रोग लगा है सबको, वही पुराना रोग यहां।
वही पुराना तन है तेरा, वही पुराने भोग यहां।।
नए साल में नया नहीं कुछ, वही पुराने रोग यहां।।
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