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Sunday, September 24, 2023
धर्म कर्म

इन 4 कार्यों में प्रतिनिधि नहीं होता है, ये कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं

Visfot News

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
पंचतन्त्र के ” सुहृद् भेद ” प्रकरण के 33 वें श्लोक में नीतिशास्त्र के ज्ञाता विष्णुशर्मा जी कहते हैं कि इतने कार्य सभी स्त्री पुरुषों को स्वयं ही करना पड़ते हैं –
आश्रितानां भृतौ स्वामिसेवायां धर्मसेवने।
पुत्रस्योत्पादने चैव न सन्ति प्रतिहस्तका:।।
(1) आश्रितानां भृतौ
जो पशु पक्षी या सेवक अपने सहारे हों, उनकी सेवा, सुरक्षा, पालन पोषण , देख रेख आदि सभी प्रकार के कार्य उसी व्यक्ति को करना पड़ते हैं, जो व्यक्ति उनको अपने पास रखता है।
यदि आपने किसी पर दया करके उसको अपने पास रखा है, उसके पालन पोषण की जिम्मेदारी ली है तो उसका पालन पोषण आपको ही करना पड़ेगा। क्योंकि आपके द्वारा रखे गए सेवकों को प्रतिदिन भोजन आदि कोई नहीं देगा। इस कार्य का प्रतिनिधि कोई भी व्यक्ति बनने को तैयार नहीं होता है। यदि आप ने कुत्ता, बिल्ली , गाय, भैंस, या किसी गरीब को पालने पोषने की जिम्मेदारी ले ली है, तो एक दो दिन तो कोई सहयोग कर देगा, किन्तु सदा ही उसकी सेवा, भोजन, सुरक्षा करने का प्रतिनिधि कोई नहीं बनता है। आपने रखा है, आप ही उसकी सदा सुरक्षा करेंगे।
(2) स्वामिसेवायाम्
माता पिता, गुरू, तथा जिसको आप श्रेष्ठ समझते हैं, ये सभी स्वामी कहे जाते हैं। माता पिता की सेवा स्वयं पुत्र को ही करना पड़ती है । आपके माता पिता की सेवा के लिए कोई प्रतिनिधि नहीं मिलता है। आपके माता पिता की श्रद्धा पूर्वक आजीवन सेवा करने के लिए कोई भी व्यक्ति प्रतिनिधि नहीं बनता है। यहां तक कि बहुएं भी ऐसी सेवा करने के लिए तैयार नहीं होतीं हैं।
शिष्य को भी अपने गुरु की सेवा स्वयं ही करना पड़ती हैं। आप के माता पिता, भाई, बहिन आदि आपके गुरु की सेवा करने के प्रतिनिधि नहीं बनते हैं। आपको अपने गुरू के प्रति जैसी श्रद्धा होती है, वैसी श्रद्धा विश्वास आपके घरवालों को नहीं होती हैं। इसलिए सेवा में भी कोई व्यक्ति प्रतिनिधि बनने के लिए तैयार नहीं होता है।
(3) धर्मसेवने
अपने धर्म का पालन करने के लिए भी कोई भी व्यक्ति प्रतिनिधि नहीं होता है। क्योंकि कि ब्रह्ममुहूर्त में चार बजे आपको उठना पड़ेगा, भगवान की पूजा उपासना, व्रत उपवास, तपस्या, मन्त्र जप आदि आपको ही करना होगा। इसके लिए श्रद्धा , नियम, संयम आदि स्वयं को ही करना होंगे। आपके धर्म का पालन कोई भी नहीं कर सकता है। आपके धर्म के आचरण में प्रतिनिधि कोई नहीं बनेगा। जो करता है, उसका फल उसी को मिलता है। और फिर आपके नियम संयम, पूजा उपासना व्रत उपवास आदि कोई कबतक करेगा? वह स्वयं ही करेगा। इसलिए कहा गया है कि धर्म के पालन का प्रतिनिधि भी कोई नहीं होता है।
(4) पुत्रस्योत्पादने
सन्तान उत्पन्न करने के लिए भी कोई प्रतिनिधि नहीं होता है। जिसका विवाह हुआ है, जो पति है, वही अपनी पत्नी से पुत्र की उत्पत्ति करता है। इसका भी कोई प्रतिनिधि नहीं होता है। पत्नी का तथा बालबच्चों का पालन पोषण करने का प्रतिनिधि तो कुछ दिनों के लिए कोई न कोई मिल भी सकता है, किन्तु सन्तान उत्पन्न करने का प्रतिनिधि तो नहीं होता है। जिसकी सन्तान होगी, वही उसका पिता होता है। ऐसा नहीं होता है कि सन्तान कोई और करे और पिता आप कहे जाएंगे।
अर्थात ये चारों कार्य सभी स्त्री पुरुषों को स्वयं करना पड़ते हैं। इन कार्यों का कोई प्रतिनिधि नहीं होता है। इसलिए प्रत्येक स्त्री पुरुष को खूब विचार कर लेना चाहिए कि जो कार्य हमको ही करना पड़ेगा, वह बहुत विवेक से क्यों न करें? अर्थात आप जबतक इस संसार में हैं, जबतक आपके शरीर में शक्ति है, तबतक आपके व्यक्तिगत कार्य आपको ही करना चाहिए। दूसरा कोई आपके कार्य को सदा ही नहीं कर सकता है।

RAM KUMAR KUSHWAHA
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