आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
नारदपाञ्चरात्र के प्रथमरात्र के 10 वें अध्याय के 75 वें, 76वें,77वें और 78 वें श्लोक में ब्रह्मा जी ने नारद जी को तीन प्रकार के पापों को बताते हुए कहा कि –
वर्तते पापिनां देहे पापानि विविधानि च।
महापापोपपापातिपापान्येव स्मृतानि च।। 75।।
ब्रह्मा जी ने कहा कि हे नारद जी! अज्ञानी स्त्री पुरुषों के शरीर में वैसे तो अनेक प्रकार के पाप निवास करते हैं। किन्तु ये तीन प्रकार के पाप बहुत भयानक होते हैं।
(1) महापाप
(2)उपपाप और
(3) अतिपाप।
अब देखिए कि महापाप, उपपाप और अतिपाप क्या हैं?
(1) ऐसे हिंसक स्त्री पुरुष महापातकी हैं।
हन्ता यो विप्रभिक्षूणां यतीनां ब्रह्मचारिणाम्।
स्त्रीणां वैष्णवानां स महापातकी स्मृत:।।76।।
जो स्त्री पुरुष, भिक्षा मांगकर जीवनयापन करनेवालों को मारते हैं। जो स्त्री पुरुष, ब्राह्मणों को मारते हैं । जो स्त्री पुरुष, सन्यासियों और ब्रह्मचारियों को मारते हैं। तथा जो स्त्री पुरुष, स्त्रियों को तथा वैष्णवों को मारते हैं, ऐसे स्त्री पुरुषों को महापातकी कहते हैं। इनका कोई प्रायश्चित्त नहीं है। इनकी दुर्दशा इस संसार में तो होती ही है, मरने के बाद भी हजारों वर्षों तक ऐसी योनियों में बार बार जन्म होता है, जहां जन्म से मृत्यु पर्यंत दुख ही दुख भोगते रहते हैं।
अब देखिए कि उपपाप क्या हैं ?
(2) उपपाप
भ्रूणघ्नश्चापि गोघ्नश्च शूद्रघ्नश्च कृतघ्नक:।
विश्वासघाती विड्भोजी स एव ह्युपपातकी।।77।।
(1) भ्रूणहत्या अर्थात गर्भनाश करनेवाले,
(2) गोघ्न अर्थात गायों को मारनेवाले,
(3) शूद्रघ्न अर्थात निर्बल असहाय शूद्रों को मारनेवाले,
(4) कृतघ्न अर्थात किए गए उपकार को न माननेवाले, उपकार करनेवाले को हो मारनेवाले,
(5) विश्वासघाती अर्थात विश्वास करनेवाले को धोखे से मारनेवाले,
(6) विड्भोजी अर्थात मांस खानेवाले, विड् अर्थात मल। इस शरीर में मलमूत्र ही तो रहता है। मछली, बकरा आदि जीवों का मांस खानेवाले ,
ये सभी स्त्री पुरुष उपपातकी हैं।
तीसरा अतिपातकी है।
(3) अतिपातकी
अगम्यागामिनो ये च सुरविप्रस्वहारिण:।
अतिपातनिश्चैते वेदविद्भि: प्रकीर्तिता:।।78।।
(1) जिस स्त्री के साथ भोग करने के लिए शास्त्रों में मना किया गया है उस स्त्री को अगम्या कहते हैं।
(1) ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तथा शूद्र के लिए अपनी जाति की स्त्री के साथ ही विवाह करना चाहिए, वही गम्या है। अपनी पत्नी के अतिरिक्त सभी की स्त्री अगम्या ही है। माता, बहिन, मौसी, चाची, गुरुपत्नी भी अगम्या है। इनके साथ भोग करनेवाले पुरुष अतिपातकी हैं।
(2) सुरविप्रस्वहारी अर्थात सुर अर्थात देवताओं के मंदिरों का, तथा विप्र अर्थात ब्राह्मणों का, स्व अर्थात धन हरण करनेवाले स्त्री पुरुषों को अतिपातकी कहा जाता है। वेदों के ज्ञाता महापुरुषों ने इनको अतिपातकी कहा है।
इन तीनों प्रकार के पाप करनेवाले स्त्री पुरुषों को राजदण्ड मिलना चाहिए। यदि कोई शाशक ऐसे पापियों को दण्डित नहीं करता है तो वह शाशक भी उनके समान ही दण्ड भोगने का अधिकारी है। ऐसे पाप करनेवाले स्त्री पुरुषों के कारण ही समाज में चोरी, व्यभिचार, अत्याचार, घूस, लूट पाट जैसे विविध प्रकार के अपराध पाप बढ़ते जाते हैं। जब कोई शाशक इन पापियों पर नियंत्रण नहीं करता है, या ध्यान ही नहीं देता है, तो कुछ समय के पश्चात उसके राज्य में, देश में पापियों की इतनी अधिक संख्या बढ़ जाती है कि अन्त में ये पापी लोग मिलकर शाशक के ही प्राण ले लेते हैं। इसलिए शाशक को चाहिए कि अपने देश में पाप करनेवालों को, जो उचित दण्ड हो, वह दण्ड देना ही चाहिए। जिस शाशक की दण्डनीति शिथिल होती है, उसके राज्य में पापियों की संख्या में वृद्धि होते चली जाती है। सारा देश जब पाप ही पाप करने लगता है, शाशक भी महापापी होता है, तब प्राकृतिक रूप से सामूहिक नरसंहार होता है।
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जिस देश में ये पाप होते हैं, उस देश का क्या होगा?
RAM KUMAR KUSHWAHAOctober 1, 2021
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