आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
पंचतन्त्र के विग्रह नामक प्रकरण के 120 वें श्लोक में विष्णु शर्मा जी ने राजपुत्रों को नीतिशास्त्र की शिक्षा देते हुए कहा कि –
देवतासु गुरौ गोषु राजसु ब्राह्मणेषु च।
नियन्तव्य: सदा कोपो बालवृद्धातुरेषु च।।
नीतिज्ञ विष्णुशर्मा जी ने राजपुत्रों को नीतिशास्त्र का ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि हे राजपुत्रो! इन आठ व्यक्तियों पर क्रोध आ रहा हो तो भी क्रोधावस्था में न तो कुछ बोलना चाहिए और न ही प्रत्युत्तर करते हुए बात को बढ़ाना चाहिए।
इन आठों के नामों पर ध्यान दीजिए –
(1) देवताओं पर
(2) गुरु अर्थात माता पिता और मंत्र दीक्षा देनेवाले तथा विद्या देनेवाले गुरु पर,
(3) गायों पर,
(4) राजाओं पर अर्थात शासकों पर
(5) ब्राह्मणों पर
(6) बालकों पर
(7) वृद्धों पर
(8) आतुर अर्थात दुखी व्याकुल व्यक्ति पर,
नियन्तव्य: सदा कोप:
इनके ऊपर क्रोध आने पर क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए। मौन रहना ही उचित है। सदा ही अर्थात जीवनपर्यंत ऐसा नियम ही कर लेना चाहिए कि इन पर क्रोध नहीं करना है। इनकी कही हुई बातों को सहन ही करना पड़ेगा। सदा ही क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए।
अब थोड़ी विशेष बात पर ध्यान दीजिए –
देवता, गुरु, गाय और ब्राह्मण
सम्पूर्ण सनातन धर्म और संस्कृति तथा मानवता इन चारों के मानने में तथा इन चारों के आदर पूजन में ही समाहित है।
यदि कोई स्त्री या पुरुष देवताओं को नहीं मानते हैं, गौ को गुरु तथा ब्राह्मण को नहीं मानते हैं, तो निश्चित ही है कि वह यज्ञ, पूजा तथा सज्जन व्यक्ति से द्वेष करते हैं।
क्योंकि इस मृत्युलोक में मनुष्य जाति में ब्राह्मण से अधिक शान्त और सहनशील मनुष्य किसी भी जाति में नहीं होते हैं। ब्राह्मण जाति के मनुष्य में सहज ही जन्मजात सरलता,सहजता तथा सबके प्रति परोपकार की वृत्ति होती है। ब्राह्मण तो बिना दीक्षा दिए ही सम्पूर्ण मनुष्य जाति का जन्म से गुरु होता है। क्रूरता, निर्दयता, हिंसा और कलह झगड़ा आदि ब्राह्मण जाति के मनुष्य में होते ही नहीं हैं। जिससे विद्या ग्रहण करते हैं, वह गुरु है। माता पिता भी गुरु ही कहे जाते हैं। इन पर क्रोध करनेवाले को हानि के अतिरिक्त जीवन में कभी कुछ नहीं मिलता है। इन पर क्रोध करनेवाले का जीवन अशान्ति और अज्ञान में ही बीतता है। संसार में जितने भी दूध देनेवाले भैंस, बकरी, ऊंट आदि जीव हैं, उन सबमें सरल, शान्त हितकारी दूध देनेवाली एक मात्र गाय ही है। यदि ब्राह्मण पर क्रोध करते हैं तो शास्त्रों का ज्ञान देनेवाले, नीति, धर्म, मोक्ष आदि का ज्ञान देनेवाले सज्जन की संगति से दूर हो जाएंगे। सज्जन की संगति से दूर होते ही मनुष्य पशुओं जैसा स्वार्थी तथा हिंसक हो जाता है। इसलिए कहा गया है कि ब्राह्मण पर क्रोध नहीं करना चाहिए। अन्यथा ब्राह्मण से दूर होते ही विवाह, ज्ञान, तथा सामाजिकता आदि सभी गुण नष्ट हो जाएंगे। समाज में दुर्गुणों का प्रचार प्रसार होते ही सारे मनुष्य एक दूसरे को खाने लगेंगे। जो आजकल दिखाई दे रहा है। मनुष्यों में ब्राह्मण ही आध्यात्मिकता का आधार है।
गाय का सम्बन्ध मनुष्य के शारीरिक निरोगिता तथा मानसिक शान्ति का आधार है। गौ और ब्राह्मण से सम्बन्धित मनुष्य ही देवताओं से सम्बन्धित होता है। देवताओं के ही हाथ में वायु, सूर्य, जल, मेघ आदि होते हैं। देवताओं के क्रोधित हो जाने पर तो धरती के सभी जीव एक एक बूंद पानी के लिए तथा एक एक दाने के लिए तरस जाएंगे। अकाल में ही भयानक बीमारी आ जाएगी। आंधी तूफान आदि को कोई मनुष्य नहीं रोक सकते हैं। इसलिए गौ, ब्राह्मण तथा देवताओं का अपमान नहीं करना चाहिए और न ही इनसे अकारण द्वेष करना चाहिए।
शासक, बालक, वृद्ध और आतुर अर्थात दुखी
शासक पर क्रोध करेंगे तो वह अपने राजकीय पद का उपयोग करके अपमान करनेवाले को नष्ट कर देता है। बालक, वृद्ध और दुखी स्त्री पुरुष तो वैसे भी शक्ति सामथ्र्य हीन होते हैं। निर्बलों पर, असहायों पर क्रोध करके समाज में कोई यश प्रतिष्ठा नहीं मिलती है। इसलिए इन पर दया ही करना चाहिए और बने तो इनका सहयोग ही करना चाहिए। बालक, वृद्ध और दुखी की जाति, स्थान तथा देश नहीं देखना चाहिए।सहायता ही करना चाहिए।
Visfot News > Blog > धर्म कर्म > इन आठों के ऊपर क्रोध करनेवाले को सदा ही हानि ही होती है
इन आठों के ऊपर क्रोध करनेवाले को सदा ही हानि ही होती है
RAM KUMAR KUSHWAHAJuly 2, 2021
posted on

0Share
the authorRAM KUMAR KUSHWAHA
All posts byRAM KUMAR KUSHWAHA
1 Comment
Comments are closed.