भोपाल। कोरोना संक्रमण के कारण करीब 18 माह बाद खुल प्रदेश के अधिकांश सरकारी स्कूलों की स्थिति खस्ताहाल है। किसी स्कूल का भवन, किसी में शौचालय आधे-अधूरे हैं, वहीं किसी में फर्नीचर नहीं है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अतिरिक्त कमरों सहित टायलेट, बिजली और फर्नीचर की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार से मिले लगभग 325 करोड़ रुपए राज्य सरकार दो साल में भी खर्च नहीं कर पाई। इसमें लगभग 270 करोड़ का सिविल वर्क नहीं कराया गया है। केंद्र सरकार ने राशि खर्च न करने पर नाराजगी जाहिर करते हुए इस साल के लिए मांगी गई रकम में भारी कटौती कर दी है और नए निर्माण कार्यों के लिए पैसा देने से मना कर दिया है।
गौरतलब है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों की स्थिति देश में कई राज्यों के मुकाबले काफी खराब है। बदहाल स्कूलों का कायाकल्प करने के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है। लेकिन केंद्र सरकार से मिले फंड को खर्च नहीं किया जा सका है। केंद्र ने राज्य से कहा है कि इस साल पुराने वर्षों की बची हुई पूरी राशि खत्म की जाए तभी अगले साल की राशि जारी की जाएगी। समग्र शिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार सभी राज्यों को सरकारी स्कूलों में भवन, फर्नीचर, बिजली, टायलेट आदि की व्यवस्था के लिए आर्थिक सहायता देती है। पिछले दो साल से कोरोना संक्रमण के कारण मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों में स्कूलों के लिए ऐसे जरूरी सिविल कार्य भी नहीं हो पाए, जिनके लिए केंद्र सरकार से पैसा मिल चुका है।
367 करोड़ रुपए के नए कामों का प्रस्ताव भेजा
प्रदेश में स्कूलों के कायाकल्प के लिए मिले 325 करोड़ रुपए राज्य सरकार दो साल में भी खर्च नहीं कर पाई है वहीं 367 करोड़ रुपए के नए कामों का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है। जानकारी के अनुसार पिछले साल मात्र 14 करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके, जो उपलब्ध राशि का सिर्फ 15 प्रतिशत है। इस बार जब राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय को समग्र शिक्षा अभियान के तहत 367 करोड़ रुपए के नए कामों का प्रस्ताव भेजा गया तो वहां से नए सिविल कार्यों के लि पैसा देने से मना कर दिया गया। केंद्र ने नए प्लान के तहत सिर्फ 11 करोड़ 93 लाख रुपए मंजूर किए हैं। जानकारी के अनुसार टीकमगढ़ ने सर्वाधिक अप्रतिशत राशि खर्च की है। दतिया ने,80, बड़वानी ने 21, बालाघाट ने 19.5, वालियर ने 19, शिवपुरी ने 17, अशोकनगर ने 14, नीमच और हरदा ने 12-12 तथा श्रीपाल ने 6.8 प्रतिशत राशि ही खर्च की है।
शौचालय निर्माण के लिए मिले थे 35.89 करोड़
केंद्र सरकार ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शौचालय निर्माण के लिए 35.89 करोड़ रूपए दिए थे। इसमें से 8वीं तक की छात्राओं के लिए टायलेट निर्माण के लिए 14.48 करोड़ और छात्रों के लिए टायलेट निर्माण पर 21.41 करोड़ रूपए खर्च होने थे, लेकिन नहीं किए गए। इसके अलावा स्कूलों में बिजली की व्यवस्था के लिए 12.4 करोड़, कक्षा 8 तक अतिरिक्त कक्षा निर्माण के लिए 66.54 करोड़, हैंडवाश यूनिट की स्थापना के लिए 2.28 करोड़, कक्षा 8 तक फर्नीचर की व्यवस्था के लिए 44.16 करोड़, कक्षा 8 तक मरम्मत कार्य के लिए 70 लाख, अपर प्राइमरी स्कूलों की मरम्मत के लिए 1.49 करोड़, प्राइमरी स्कूल भवनों की मरम्मत के लिए 5.09 करोड़, भवन विहीन स्कूलों के लिए 84.89 करोड़, छात्रावासों की मरम्मत के लिए 3.83 करोड़ और कस्तूरबा छात्रावास के लिए 112 करोड़ रूपए मिले थे, लेकिन खर्च नहीं किया गया।
14 जिलों में एक पैसा भी खर्च नहीं
आश्चर्यजनक यह है की केंद्र से मिली राशि में से 14 जिलों ने कोई काम नहीं किया गया। इंदौर, मुरैना, शाजापुर, उज्जैन, झाबुआ, खंडवा, होशंगाबाद, सागर, छतरपुर, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, उमरिया और सिंगरौली ऐसे जिले हैं, जहां केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि का एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया। हालांकि राज्य शिक्षा केंद्र के अपर मिशन संचालक लोकेश कुमार जांगिड़ कहते हैं कि केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत पहले से मंजूर बजट को खर्च करने के लिए एक साल का और मौका दे दिया है। हमने सभी जिलों से आगामी दिसंबर तक बची हुई राशि खर्च करने के लिए बिंदुवार कार्ययोजना मांगी है। चार महीनों में अधिकतम अधूरे कार्य पूरे कर लिए जाएंगे। निर्माण कार्यों में स्पील ओवर सामान्य बात है।
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मप्र के सरकारी स्कूलों में दो साल से आधे-अधूरे पड़े काम
मप्र के सरकारी स्कूलों में दो साल से आधे-अधूरे पड़े काम
RAM KUMAR KUSHWAHAOctober 2, 2021
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