ईशानगर। लॉकडाउन और कोरोना कफ्र्यू के कारण आर्थिक रूप से आम जनता टूट चुकी है और वे शासन-प्रशासन से मदद की उम्मीद कर रहे है लेकिन मदद की बजाय उन पर बोझ बढ़ता नजर आ रहा है। दरअसल ग्राम के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों से शाला विकास के नाम पर 300 से 500 रुपए तक वसूले जाने का मामला प्रकाश में आया है। मजे की बात यह है कि राशि लेने के बाद जो रसीद विद्यार्थियों को दी जा रही है उसमें किसी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं।अभिभावकों का कहना है कि अब वे अपने बच्चों को शासकीय स्कूल में भी नहीं पढ़ा पा रहे हैं क्योंकि यहां शाला विकास के नाम पर वसूली जारही राशि न देने पर स्कूल प्रबंधन द्वारा नाम काटे जाने की धमकी दी जा रही है। इसके अलावा पाठ्य पुस्तकों, यूनिफार्म आदि का खर्च भी अभिभावकों को ही वहन करना पड़ता है। पिछले साल की तुलना में इस वर्ष शुल्क में 20 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। कुछ अभिभावकों द्वारा फीस माफी के लिए आवेदन भी किए जाते हैं लेकिन जिम्मेदार उन्हें नजरंदाज कर वसूली में मस्त हैं। सूत्रों की मानें तो यह वसूली स्कूल में पदस्थ शिक्षकों के माध्यम से कराई जा रही है। प्रवेश प्रक्रिया के बीच कोरोना को भी दरकिनार किया जा रहा है। यहां न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है और न ही मास्क का उपयोग। अधिकांश बच्चे और शिक्षक बगैर मास्क के दिख रहे हैं। शासन के निर्देशानुसार शासकीय स्कूलों की नामांकन शुल्क निर्धारित की गई है लेकिन जब स्कूल हीं नही लग रहे तो शाला विकास शुल्क किसलिए लिया जा रहा है यह सोचने का विषय है। फार्म जमा करने वाले शिक्षक से जानकारी मांगी गई तो उनका था कि प्राचार्य जेपी चौरसिया के आदेश से यह शुल्क लिया जा रहा है। प्राचार्य के स्कूल न आने की बात भी सामने आई है। इसके अलावा संबल योजना के अन्तर्गत हर छात्र-छात्रा के लिए मार्च में आये 900 रुपये भी वितरित नहीं किए गए हैं।
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शाला विकास के नाम पर छात्रों से वसूले जा रहे 300 से 500 रुपए
RAM KUMAR KUSHWAHAJuly 3, 2021
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