आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
श्रीमद् देवीभागवत के 9 वें स्कन्ध के 24 वें अध्याय के 98 वें श्लोक में ब्रह्मा जी ने नारद जी को भगवान की अतिप्रिय देवियों का नाम बताते हुए कहा कि –
लक्ष्मी: सरस्वती गङ्गा तुलसी चापि नारद।
हरे: प्रियाश्चतस्रश्च बभूवुरीश्वरस्य च।। 98।।
ब्रह्मा जी ने कहा कि हे नारद!भगवान श्री हरि को ये चारों देवियां अतिप्रिय हैं।
( 1) लक्ष्मी
(2) सरस्वती
(3) गङ्गा
(4) तुलसी
इन चारों का अपमान करनेवाले से भगवान रुष्ट हो जाते हैं।
अब देखिए कि इनका अपमान कैसे होता है?
(1) लक्ष्मी
भगवान नारायण ही सम्पूर्ण जीवों का पालन पोषण करते हैं। जीवों के पालन पोषण का कार्य भगवान ने लक्ष्मी जी को सौंप रखा है। संसार का सारा व्यवहार भोजन, जल, वस्त्र, भवन, विवाह, आदि सब कुछ तो लक्ष्मी से ही होते हैं। सोना, चांदी, हीरा, मणि, रुपया, आदि यही तो लक्ष्मी जी का प्रत्यक्ष स्वरूप है। धन से प्राप्त होनेवाला भोजन, यश, सेवा, नौकर चाकर, आदि सबकुछ तो लक्ष्मी से ही प्राप्त होता है। किन्तु जब इस लक्ष्मी से, व्यभिचार, अत्याचार तथा भ्रष्टाचार आदि किया जाता है, तथा देवी देवताओं की अवहेलना की जाती, यज्ञ हवन आदि बंद किए जाते हैं। मदिरा, जुआ, हिंसा आदि की वृद्धि की जाती है। निर्बलों असहायों को सताया जाता है, तो भगवान अपनी लक्ष्मी जी का ऐसे स्थानों पर उपयोग देखकर रुष्ट होकर उस अत्याचारी, व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी का विनाश कर देते हैं। वही लक्ष्मी उसकी प्राणघातक बन जाती है। भगवान ऐसे ही रावण, कंस जैसे लक्ष्मीपतियों के विनाश के लिए आते हैं और अपनी लक्ष्मी को पुन: अच्छे धार्मिक शाशक को सौंपकर संसार की व्यवस्था करते हैं।
(2) सरस्वती
सभी कलाएं और सभी विद्याएं सरस्वती का स्वरूप हैं। मकान बनाने से लेकर गान नृत्य आदि सभी विद्याएं सरस्वती देवी के स्वरूप हैं। सभी भाषाओं के विद्वान, विज्ञान, सभी प्रकार की वस्तुओं का निर्माण आदि सभी कुछ सरस्वती देवी का स्वरूप है। जब कोई अहंकारी स्त्री पुरुष इन विद्याओं के ज्ञाताओं का अपमान करते हैं। आदर नहीं देते हैं। विद्यासम्पन्न व्यक्ति को त्यागकर अयोग्य व्यक्ति को सम्मानित करते हैं,तब भगवान श्री हरि अपनी सरस्वती को अपमानित देखकर ऐसे रुष्ट हो जाते हैं कि वे कोई न कोई निमित्त बनाकर मानवसमाज को नाश की ओर अभिमुख कर देते हैं। यही सरस्वती का अपमान है। यदि कोई किसी भी विद्या को पढक़र,समाज को धोखा देता है, या अपनी विद्या का भय दिखाकर या विद्या से पाखण्ड रचकर मानवसमाज को दुखी करते हैं, तो भगवान उनसे रुष्ट होकर किसी भी विद्या से सरस्वती से कमाए हुए यश को धन को नष्ट कर देते हैं। कभी कभी तो ऐसा निमित्त बना देते हैं कि उनके प्राण तक हरण कर लेते हैं। सरस्वती और लक्ष्मी, ये दोनों ही भगवान श्री हरि की संसार संचालन की प्रधान शक्तियां हैं। सरस्वती से सभी विद्याएं दिखाईं दे रहीं हैं और लक्ष्मी जी से सभी जीवित और हृष्ट पुष्ट दिखाई दे रहे हैं। सरस्वती और लक्ष्मी का दुरुपयोग करनेवाले को रोग, भय तथा भयानक मृत्यु आदि प्राप्त होते हैं।
(3) गङ्गा
जब कोई स्त्री पुरुष धन के लिए या शरीर सुख के लिए अनेक प्रकार के पापकर्मों को करके अतिदुखी होने लगते हैं तो भगवान नारायण ने उन पापों को नष्ट करके पुन: शुद्ध जीवन जीने का अवसर प्रदान किया है। गङ्गा जी को भगवान नारायण ने जीवों को एकबार शुद्ध करके पुन: मानवता से जीने का अवसर प्रदान करने का काम सौंपा है। मरने के बाद भी मनुष्यों को तारने की जिम्मेदारी सौंप रखी है। गङ्गा जी भी अनन्त स्त्री पुरुषों के सभी प्रकार के पापों को धोकर शुद्ध करने का काम निरन्तर कर रहीं हैं। अब यदि कोई शाशक या कोई दुष्ट स्त्री पुरुष, भगवान की इस पापप्रक्षालन व्यवस्था को भंग करता है। गङ्गा जी को विकृतरूप देता है। उसमें मल मूत्र आदि करके अशुद्ध करता है, या उसकी विपरीत दिशा बदलकर कुछ और करता है तो निश्चित ही भगवान उस व्यक्ति को शाशक को जीवन पर्यंत यशहीन धनहीन करके नरक के स्वामी यमराज को सौंप देते हैं।
(4) तुलसी का एक नाम वृंदा है। इसी वृंदा के कारण ही भगवान के धाम का नाम वृंदावन है। तुलसी और शालग्राम दोनों ही एक के बिना एक अधूरे हैं। भगवान नारायण तो तुलसीदल के बिना भोजन भी स्वीकार नहीं करते हैं। भगवान नारायण और तुलसी सदा ही एकसाथ रहते हैं। तुलसी के पौधे को घर में न लगाकर अन्य अनुपयोगी पौधों को मात्र सौन्दर्य के लिए लगाते हैं, यही तो तुलसी का अपमान है। जिस घर में भगवान की पूजा उपासना बिना तुलसी के होती है, भगवान उसकी पूजा ही स्वीकार नहीं करते हैं। भगवान ही जब पूजा स्वीकार नहीं करते हैं तो पूर्वजन्म के किसी दोष अपराध के कारण आई हुई आपत्ति विपत्ति पूजा करने पर भी दूर नहीं होती है। इसलिए आप जिससे प्रेम करते हैं, तो उसकी प्रिय वस्तुओं का भी समादर करिए। अन्यथा आपका तीर्थभ्रमण, पूजा उपासना तथा व्रत उपवास,दानपुण्य आदि सबकुछ व्यर्थ है। जितनी श्रद्धा उतना ही फल प्राप्त होता है। लक्ष्मी ,सरस्वती, गङ्गा तथा तुलसीदल का सही स्वरूप जानकर उनका सेवन करने से सभी स्त्री पुरुष इन संसार समुद्र से सहज में ही पार हो जाते हैं। मन और तन की निर्मलता के लिए ही ये सब साधन हैं।
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