आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
रामचरित मानस के बालकाण्ड के 125 वें दोहे की 8 वीं चौपाई में तुलसीदास जी ने भगवान इन्द्र को नारद जी की तपस्या से भयभीत देखकर कहा कि –
जे कामी लोलुप जग माहीं।
कुटिल काक इव सबहिं डराहीं।।
जो पुरुष धन के लालची हैं, तथा स्त्रीभोगी हैं, तथा जो स्त्री, धन की लालची हैं और पुरुषभोगिनी हैं, ऐसे स्त्री पुरुषों का मन कौए के जैसा डरपोंक हो जाता है। सदा ही सबजगह ऐसे डरते रहते हैं, जैसे कपटी कौआ आते हुए व्यक्ति के प्रति सदा यही सोचता रहता है कि ये मुझे पकडऩे आ रहा है। इसलिए कौआ सदा ही सबसे डरता रहता है। यह तो इस चौपाई का सामान्य अर्थ है। किन्तु वास्तव में यदि आपको भय लगता है तो स्वयं के विषय में बहुत विचार करना चाहिए।
जे कामी लोलुप जग माहीं
काम से संसार की उत्पत्ति होती है,और धन से परिवार पालन होता है। किन्तु अधिक काम और अधिक धनलोभ स्त्री पुरुषों को असामाजिक बना देता है। चिन्ता और व्याकुलता भरा जीवन देते हैं। जे अर्थात इस संसार के किसी भी देश की कोई भी स्त्री हो, कोई भी पुरुष हो, किसी भी उम्र की स्त्री हो, किसी भी उम्र का पुरुष हो, कितने भी ऊंचे कुल की स्त्री हो, कितने भी ऊंचे कुल का पुरुष हो, कितनी भी अधिक धनवती स्त्री हो, कितना भी धनवान पुरुष हो, कितने भी ऊंचे पद पर बैठी स्त्री हो, कितने भी ऊंचे पद पर बैठा पुरुष हो, स्त्री या पुरुष के मन में धन के प्रति अतिलालच है, या किसी स्त्री को पुरुष के प्रति भोगकामना है,या किसी पुरुष को किसी स्त्री के प्रति भोगकामना है तो, उस स्त्री पुरुष का मन किसी का भी विश्वास नहीं करता है। उसका मन सदा ही भयभीत रहेगा। कहीं किसी ने मुझे उस पुरुष से मिलते तो नहीं देख लिया है। कहीं किसी ने मुझे उस स्त्री से मिलते तो नहीं देख लिया है, कहीं ये व्यक्ति मुझे धोखा देकर मेरा धन तो नहीं खा जाएगा इत्यादि आशंकाएं उस स्त्री पुरुष के हृदय में बनी ही रहतीं हैं। इसलिए ऐसी कामिनी और लोभिनी लालची स्त्री का तथा कामी लालची पुरुष का,न तो कोई विश्वास करता है, और न ही ऐसी स्त्री पुरुषों को मानव समाज में कोई आदर सम्मान प्राप्त होता है। भले ही वह कितने भी ऊंचे पद पर विराजमान हो। ऐसे स्त्री पुरुष, कौए के समान होते हैं। कौए का न तो कोई मांस खाता है और न ही उसको कोई तोते के समान घर में पालता है, फिर भी कौआ समझता है कि मुझे कोई पकड़ न ले, कोई मार न डाले। इसलिए आज के वर्तमानकाल में भी जिन महिलाओं में या पुरुषों में धन कमाने की अतिशय लालसा होती है, सरकारी ऊंचे पदों पर विराजमान होते हैं। किन्तु उनका लालच घूसखोर बना देता है, तो जजों के पद पर होते हुए भी छोटे से छोटे व्यक्ति से भी भयभीत रहते हैं।
काम और लोभ ही तो सबको समाज में अनादर करवाता है। इसी काम और लोभ के कारण स्त्री ,अच्छे से अच्छे परिवार को नष्ट कर देतीं हैं। पुरुष भी अपने ही भाइयों के साथ धोखा करते हैं। समाज के साथ धोखा करते हैं।
कुटिल काक इव सबहिं डराहीं
ऐसे कामी, लोभी, लालची स्त्री पुरुष कौए के समान मनवाले हो जाते हैं। जैसे कौआ स्वयं ही कपटी होता है, स्वयं ही शंका करता है, स्वयं ही सबके प्रति गलतधारणा रखता है, इसलिए उसे सब जगह सबसे भय लगता है। वर्तमान में प्राय: ऐसे स्त्री पुरुष अधिक मात्रा में मिलते हैं, जो स्वयं ही शंका में जीते रहते हैं, और दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं। हमारे स्वामी जी ब्रह्मलीन विरक्तशिरोमणि श्री वामदेव जी महाराज कहा करते थे कि लंगोटी के पक्के और हाथ के पक्के स्त्री पुरुषों से तो इन्द्र को भी डर लगता है। किन्तु ऐसे व्यक्ति को संसार में कहीं भी डर नहीं लगता है।
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ऐसे स्त्री पुरुषों को सदा ही सर्वत्र भय लगता रहता है
RAM KUMAR KUSHWAHASeptember 4, 2021
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