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Thursday, April 18, 2024
मध्यप्रदेश

364 दिन के इंतजार के बाद हुए राधा रानी के दर्शन

Visfot News

विदिशा
राधाअष्टमी पर नंदवाना स्थित वृदावंन गली में राधाअष्टमी का पर्व बडे धूमधाम के साथ मनाया गया ।  यहा हजारो की तदाद में श्रृदाल दर्शन करने पहुॅचे है और धर्म लाभ लिया  । राधाष्टमी पर 364 दिन के इंतजार के वाद भक्तो को राधारानी के दर्शन मिले ं। सदियो से ंपरंपरा चली आ रही है कि मंदिर मे राधारानी की साल भर तक गुप्त पूजा होती है । सिर्फ एक दिन के लिए आम भक्तो के लिए मंदिर के पट खुलते है । यह सिलसिला विगत 330 वर्षो से ज्यादा समय से चला आ रहा है मंदिर के सवसे अहम विशेषता है कि मंदिर आज भी हवेली में स्थापित है ।

रविवार को राधावल्लभीय सम्प्रदाय के राधा रानी मंदिर में राधारानी के दर्शनो के लिए श्रृदालु आतुर दिखाई दिये । मंदिर परिसर में गेट के वाहर भक्त दर्शनो की आस लिये बैठे थे और  राधे राधे के जयकारे लगा रहे थे। राधारानी के भजनो पर अपने आप को थिरकने से नहीं रोक पाये । 12 बजे के वाद आखिरकार वो झण आया जव मंदिर के पट खोले गये ।  

लम्बी कतारो के बीच भक्तो ने दर्शन किये और धर्मलाभ लिया।  उल्लेखनीय है कि औरंगजेव जव हिन्दूस्थान के मंदिरो को ध्वस्त किया था वृन्दावन में स्थित मंदिरो में आक्रमण हुआ तो वल्लभीय सम्प्रदाय के पूर्वज मूर्ति लेकर पलायन करके और कई दिनो के सफर के वाद विदिशा पहुॅचे थे। यहा कालान्तर में जगह न होने कारण कुछ दिन प्रतिमाओं को खुले में रखा इसके वाद उन्हे हवेली में स्थापित कर दिया । उसके वाद से ही साल भर राधा रानी की गुप्त रूप से पूजा होती है और सिर्फ एक दिन के लिए भक्तो के लिए दर्शनो के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं  । वहीं मंदिर के पुजारी मनमोहन शर्मा ने बताया कि देश में बरसाना के वाद विदिशा में राधारानी का प्राचीन मंदिर है ।

आज भी यह मंदिर में हवेली में बना हुआ है । 1670 में जव औरंगजेव ने आक्रमण किया था उसके वाद वृदांवन से राधारानी का दरवार लेकर यहा आये थे और तव से ही यहा गुप्त रूप से पूजा होती है और आज भी जन सामान्य को वर्ष में एक दिन राधा अष्टमी पर ही दर्शन कराये जाते हैं। प्राचीन स्थापन इसमें कोई फेर बदल नहीं हुआ है। राधाष्टमी और उसके दूसरे दिन पालना दर्शन के बाद  संगीत का आयोजन होता है जिसमें राधारानी की बधाई गायन  होता है। इसके बाद 5 सितंबर को शयन आरती के बाद मंदिर के पट पूरे साल भर के लिए बंद हो जाएंगे।..

 

RAM KUMAR KUSHWAHA
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