आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम
कूर्मपुराण के (उपरिभाग)उत्तरभाग के 38 वें अध्याय के 7 वें श्लोक में मार्कण्डेय ऋषि ने धर्मराज युधिष्ठिर से नर्मदा जी का महात्म्य बताते हुए कहा कि –
पुण्या कनखले गङ्गा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।।
मार्कण्डेय ऋषि ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि हे पाण्डुनन्दन! गङ्गा जी के कुछ विशेष स्थानों में स्नान करने से,तथा पिण्ड दान आदि करने से कुछ विशेष पुण्यों का वर्णन पुराणों में कहा गया है। कनखल में गङ्गा जी में स्नान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र में सरस्वती जी में स्नान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
किन्तु नर्मदा जी के विषय में तो पुराणों में ऐसा कहा गया है कि –
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।।
कोई भी स्त्री पुरुष किसी भी गांव में अथवा किसी भी अरण्य अर्थात वन में नर्मदा जी में स्नान करने से समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यही तो नर्मदा में स्नान करने का सबसे बड़ा महत्त्व है। गङ्गा जी के विषय में तथा सरस्वती और यमुना आदि दिव्य नदियों के जल में स्नान करने से सभी प्रकार के पाप ताप नष्ट होते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। किन्तु इन दिव्य नदियों में ऐसे अनेक स्थानों का वर्णन मिलता है कि इस कनखल आदि कुछ विशेष स्थानों में पिण्ड दान करने से पितर तृप्त हो जाते हैं। कुछ स्थानों का ही विशेष महत्त्व बताया गया है। उन विशेष स्थानों में जाकर ही वह पुण्य प्राप्त होता है। उन विशेष स्थानों में जाना भी सबके लिए सुलभ और सुगम नहीं होता है। किन्तु नर्मदा जी की तो अद्भुत विशेषता है।
ग्रामे वा यदि वारण्ये
नर्मदा अमरकंटक से निकल कर समुद्र पर्यन्त एक-समान ही पुण्य प्रदान करतीं हैं। ऋद्धि सिद्धि प्रदान करतीं हैं। गांवों से निकलती हुई नर्मदा में जिस किसी स्थान में कोई भी स्त्री पुरुष स्नान कर लेंगे तो स्नान करने का जो फल अमरकंटक में मिलना था,वही पुण्य फल उस छोटे से गांव की नर्मदा जी में स्नान करने से पुण्य फल प्राप्त होगा।
कितना विलक्षण अद्भुत माहात्म्य है कि –
पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
नर्मदा जी के जल का ही महत्त्व है, स्थान का महत्त्व नहीं है। अरण्य अर्थात वन। जंगल में भी नर्मदा जी प्राप्त हो जातीं हैं तो वहां भी कहीं भी किसी भी स्थान में स्नान कर लीजिए तो भी वही पाप ताप नष्ट होते हैं,वही ऋद्धि सिद्धि प्राप्त होतीं हैं।अर्थात नर्मदा जी का हर कंकर शंकर जी हैं और नर्मदा जी के जल की एक बूंद भी कहीं भी किसी भी स्थान की प्राप्त हो जाए तो सर्वत्र अर्थात सभी स्थानों में पुण्या अर्थात पवित्र होती है। सर्वदा अर्थात सदा ही। कोई तिथि महीना नक्षत्र,समय निर्धारित नहीं है। सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक कभी भी किसी भी समय में जबकभी स्नान करेंगे तो,जो पुण्य फल ब्रह्ममूहूर्त में स्नान करने से मिलता है,वही पुण्य फल दोपहर में, सायंकाल में,रात में स्नान करने मिलता है। इतनी अधिक छूट तो किसी भी गङ्गादि दिव्य नदियों में स्नान करने में नहीं मिलती है, कहीं भी स्नान करिए,कभी भी स्नान करिए, उतना ही पुण्य फल प्राप्त होता है। सभी नदियों के स्नान में तिथि, नक्षत्र,महीना आदि में विशेष महत्त्व का वर्णन कहा गया है। कुछ विशेष स्थानों में कुछ विशेष कार्य करने का निर्देश दिया गया है। नर्मदा जी में स्नान करने का सबसे बड़ा महत्त्व यही है कि अमरकंटक से लेकर समुद्र पर्यन्त किसी भी स्थान में,कभी भी किसी भी समय में स्नान किया जाएगा तो समान फल प्राप्त होता है,यही मां नर्मदा जी का सबसे बड़ा महत्त्व है। इसलिए इस भयानक कलियुग में भी आज भगवती नर्मदा जी ने इन कलियुग के आलसी प्रमादी, स्त्री पुरुषों को इस संसार सागर से पार करने के लिए इतनी अधिक करुणा कृपा की है कि कोई भी, कभी भी, कहीं भी स्नान कर लेगा तो मैं उसको उसी स्थान में,उसी समय ही पाप ताप से मुक्त कर दूंगी। भगवती नर्मदा जी की इस अपार अगाध करुणा कृपा का लाभ प्राप्त कर ही लेना चाहिए। नर्मदा तट में चलनेवाले परिक्रमा वासियों की सेवा करनेवाले को तो भगवती नर्मदा सदा ही अपने हृदय से लगाकर रखतीं हैं।
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नर्मदा जी में कहीं भी स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।।
नर्मदा जी में कहीं भी स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।।
RAM KUMAR KUSHWAHAMarch 7, 2022
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