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Sunday, September 24, 2023
धर्म कर्म

रोग क्यों होते हैं, क्या ये भी मनुष्य के कर्म का फल है?

Visfot News

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दावन
सतयुग आदि गत तीन युगों में कौन कौन सी भाषाएँ थीं?
स्वकर्मनिरतो भव।
पहले तो आप ये देखिए कि क्या रोग भी प्रारब्ध से होते हैं? जी हां,। आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश में इस विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है।
रोग दो प्रकार के होते हैं।
(1) साध्य और (2) असाध्य
भोजन, और दैनिक क्रिया की अनियमिततासे होनेवाले रोग और प्राकृतिक परिवर्तन से होनेवाले रोग औषधि के नियमित सेवन से तथा रोगवर्धक पदार्थों के सेवन न करने से रोग दूर हो जाता है।
यह साध्य रोग कहा जाता है।
असाध्य रोग भी दो प्रकार के होते हैं।
(1) बहुतकाल से रोगी मनुष्य का शरीर सभीप्रकार से क्षीण हो चुका हो, तो वह असाध्य कहा जाता है दूसरा असाध्य रोग वह कहा जाता है जो प्रारब्ध के कर्मों के कारण होता है। वहीं यह पुन: प्रश्न उठाया गया है कि कैसे जाना जाए कि यह असाध्य रोग प्रारब्ध के कर्म के कारण हुआ है? तब उत्तर देते हुए भावप्रकाशकार कहते हैं कि अकारण ही कोई रोग हो जाए, उस रोगी को गुणवान वैद्य भी मिल जाए, औषधि भी मिल जाए, समय समय पर औषधि का सेवन भी किया जाए, रोग भी प्रारम्भिक स्थिति में हो, फिर भी रोग की वृद्धि निरंतर हो रही हो। सभी सानुकूल उपाय होते हुए भी रोगी मृत्यु की ओर चला जा रहा हो तो समझना चाहिए कि प्रारब्धकर्म के कारण रोग हुआ है। पूर्वजन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते पूर्वजन्म का पाप व्याधि के रूप में प्रगट होता है।और उसे भोगना पड़ता है।
अब देखिए कि सतयुग आदि गत तीन युगों में कौन सी भाषा थी?
भागवत के 2 स्कन्ध के 6 वें श्लोक में शुकदेव जी कहते हैं कि
स चिन्तयन् द्व्रयक्षरमेकदाम्भस्युपाश्रृणोद् द्विर्गदितं वचो विभु:।स्पर्शेषु यत् षोडशमेकविंशं निष्किञ्चनानां नृप यद् धनं विदु:।।
प्रलयकाल में सभी जीव समाप्त हो चुके थे।
मात्र चारों तरफ जल ही जल था।भगवान की नाभिकमल से प्रगट ब्रह्मा जी सोच रहे थे कि सृष्टि का पुनर्निर्माण कैसे हुआ। उसी समय उन्हे स्पर्श वर्णों का 16 वां और 21 वां अक्षर आज्ञा के रूप में सुनाई दिया।क से लेकर म तक के वर्णों को स्पर्शवर्ण कहते हैं।क से त वर्ण 16 वां अक्षर है, और प 21 अक्षर है। अर्थात तप करो ऐसा सुनाई दिया।इससे सिद्ध होता है कि आदिभाषा संस्कृत है।इसे सतयुग समझिए बाल्मीकीयरामायण के सुन्दर काण्ड में कहा गया है कि हनुमान जी सोचते हैं कि यदि मैं सीता जी से संस्कृत में बात करूंगा तो वो मुझे रावण समझकर डर जाएगी। इससे यह सिद्ध होता है कि रावण सीता से संस्कृत भाषा में बात करता था। हनुमान जी सुग्रीव के भेजने पर राम जी से संस्कृत में ही बोले थे।राम जी ने प्रशंशा भी की है यह भी बाल्मीकीय रामायण में ही है।यह त्रेतायुग की भाषा भी संस्कृत हुई।अब द्वापरयुग की भाषा देखिए।
भागवत के 1 स्कन्ध के 4 अध्याय के 24 वें 25 श्लोक में सूत जी ने कहा कि
स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा।कर्मश्रेयसिमूढानां श्रेय एवं भवेदिह।इति भारतमाख्यानं कृपया मुनिना कृतम्।।25।।
मनुष्य का बौद्धिक ह्रास देखते हुए भगवान व्यास जी ने वेदों के रहस्य समझने के लिए स्त्री, शूद्र और अनधिकारी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए कृपा करके महाभारत का निर्माण किया है।क्यों कि वे वेद की भाषा और उसके रहस्य समझने में असमर्थ हो गए।संस्कृत भाषा में लिखी गई महाभारत स्त्री और शूद्रों के लिए है।तो इससे यह सिद्ध होता है कि द्वापर युग में भी सामान्य भाषा संस्कृत थी।अब कलियुग में मनुष्य की बौद्धिक क्षमता बहुत ही कम हो गई है इसलिए सभी लोकभाषाएं बोलियां संस्कृत की अपभ्रंश भाषाएं हैं। अंग्रेजी, उर्दू, आदि देशीय विदेशीय सभी भाषाओं का उच्चारण अ से ज्ञ तक के अक्षरों में ही होता है। लिपि अलग हो सकती है किंतु उच्चारण तो संस्कृत के वर्णों का ही होता है।और कोई उच्चारण हो भी नहीं सकता है।

RAM KUMAR KUSHWAHA
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