आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
महाभारत के उद्योग पर्व के 8 वें अध्याय के 52 वें और 53 वें श्लोक में महाराज शल्य ने युधिष्ठिर जी से कहा कि –
सर्वं दु:खमिदं वीर सुखोदर्कं भविष्यति।
नात्र मन्युस्त्वया कार्यो विधिर्हि बलवत्तर:।।52।।
महाराज शल्य ने कहा कि हे महाराज युधिष्ठिर! मैं तो आपके पक्ष से ही युद्ध करने के लिए आ रहा था, किन्तु मध्य में ही दुर्योधन ने बहुत स्वागत सत्कार के साथ बड़ी अनुनय विनय करके मुझे वेवश कर दिया है। अब मैं उनकी तरफ से ही सारथी का कार्य करने के लिए विवश हो गया हूं।
फिर भी –
सर्वं दु:खमिदं वीर सुखोदर्कं भविष्यति
संसार में जितने भी प्रकार के दुख होते हैं, उन दुखों के बाद अवश्य ही सुख होता है। प्रत्येक दुख के बाद सुख ही प्राप्त होता है। आपको भी जो द्रौपदी के अपमान से लेकर अज्ञातवास तक जितने भी दुख प्राप्त हुए हैं वे सभी दुख आजतक के लिए ही थे। अब युद्ध में आप लोगों की विजय होगी, आप लोग ही निष्कण्टक राज्य भोगेंगे।
नात्र मन्युस्त्वया कार्यो
दुर्योधन के पक्ष में मेरे चले जाने का कोई दुख मत करो।
विधिर्हि बलवत्तर:
इस संसार में सभी का जीवन मरण, सुख और दुख तो विधाता के हाथ में है। विधाता का विधान ही बलवान है, न कोई मनुष्य ही बलवान है, और न ही कोई देवता बलवान है। आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं कि मात्र हम ही दुखी हैं?
दु:खानि हि महात्मान: प्राप्नुवन्ति युधिष्ठिर।
देवैरपि हि दु:खानि प्राप्तानि जगतीपते।।54।
महाराज शल्य ने कहा कि हे युधिष्ठिर! इस संसार में मात्र कुकर्मियों, कर्तव्यहीनों को ही दुख प्राप्त नहीं होता है , अपितु बड़े बड़े धर्मात्माओं महात्माओं को भी दुख प्राप्त होता है, बड़े बड़े बलवानों को श्रेष्ठ महापुरुषों को भी दुख प्राप्त होता है। क्योंकि संसार तो दुखमय ही है।
देवैरपि हि दु:खानि प्राप्तानि जगतीपते
हे पृथिवीपति ! इस संसार में देवताओं को भी दुख प्राप्त होता है तो मृत्युलोक के मनुष्य की तो बात ही क्या है? बिना दुख के तो इस संसार में कोई भी नहीं जी रहा है। प्राय: सभी स्त्री पुरुष, किसी न किसी कारण से दुखी रहते ही हैं। अनेक मनुष्य तो अपने अज्ञान के कारण, स्वभाव के कारण भी दुखी रहते हैं। किसी को परिवार से दुख है तो किसी को अकेलेपन का दुख है। संसार में किसी से भी पूंछिए तो कोई न कोई दुख अवश्य ही बताएगा। इसलिए किसी भी प्रकार का दुख हो, उसी प्रकार के लाखों मनुष्य दुखी मिलेंगे। इसलिए दुख में धैर्य रखना चाहिए। क्योंकि सुख के बाद दुख आया है तो अवश्य ही दुख के बाद सुख ही आएगा। किसी के माता पिता, पति, या पत्नी या पुत्र आदि का वियोग हो जाता है तो वह आजीवन वियोग हो जाता है। संसार का सबसे बड़ा दुख तो यही है कि अपनी आंखों के सामने ही अपने किसी प्रिय के प्राण चले जाते हैं। किन्तु क्या पता है कि वह जीवित रहता तो सुख ही देता..? हो सकता है कि वह अपार दुख देता। उस अपार निरन्तर आजीवन दुख को भोगना अतिकठिन हो जाता। इसलिए दुख की स्थिति में भी ऐसा ही समझना चाहिए कि भविष्य में निश्चित ही सुख आएगा । सुख तो आएगा ही। इसलिए सुख का समय आने के पहले ही इतना अधिक हताश नहीं होना चाहिए कि आनेवाले सुख से भी वंचित रह जाएं।
Visfot News > Blog > धर्म कर्म > वर्तमान के दुख में ही भविष्य का सुख छिपा रहता है
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