आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
महाभारत के उद्योग पर्व के 36 वें अध्याय के 56 वें श्लोक में विदुर जी ने धृतराष्ट्र से कहा कि –
न वै भिन्ना जातु चरन्ति धर्मं,
न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्ना:।
न वै भिन्ना: गौरवं प्राप्नुवन्ति,
न वै भिन्ना: प्रशमं रोचयन्ति।।
न वै भिन्ना: जातु चरन्ति धर्मम्
भेदभाव बुद्धि के स्त्री पुरुष धर्म का आचरण नहीं करते हैं, और न ही धर्म के यथार्थ रहस्य को जानते हैं। विदुर जी ने कहा कि हे महाराज धृतराष्ट्र! धर्म तो सभी जीवों के प्रति भेदभाव रहित दया, करुणा, परोपकार आदि गुणों को धारण करने की शक्ति प्रदान करता है। धर्म तो सत्य, दान, दया और तप करने का उपदेश देता है। जो स्त्री पुरुष भगवान की तो पूजा करते हैं, शारीरिक रूप से अपने धर्म का पालन भी भी करते हैं,धार्मिक तिलक, वेषभूषा आदि भी धारण करते हैं। किन्तु अपने पराए का भेदभाव रखते हुए हृदय में ईष्र्या द्वेष आदि दोषों से भरे हुए हैं, हिंसा, असत्य, परधन ,परनारी की कामना भी करते हैं, ऐसे स्त्री पुरुष वास्तव में न तो धर्म का मर्म जानते हैं और न ही वे धार्मिक कहे जाते हैं।
धर्म किसी को दुराग्रही हठी ,हिंसक और जीवद्रोही नहीं बनाता है।
न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्ना:
भेदभाव करनेवाले किसी भी शाशक को या सामाजिक व्यक्ति को या पारिवारिक व्यक्ति को सुख प्राप्त नहीं होता है। जहां भेदभावपूर्ण व्यवहार होता है, वहीं अशान्ति और दुख सदा निवास करते हैं। संतानों में भेदभाव रखनेवाले माता पिता को तक तो इस लोक में सुख और शान्ति प्राप्त नहीं होते हैं तो अन्य किसी की तो बात ही क्या है? अर्थात धर्म तो भेदभाव नष्ट करने के लिए एक आत्मिक धर्म है। धर्म के रहस्य और फल को जाननेवाले स्त्री पुरुष संसार की प्रत्येक वस्तु को नाशवान जानकर त्याग कर देते हैं। धर्म तो संसार का त्याग करने का उपदेश देता है, संसार के भोग्य पदार्थों के लिए किसी को दुख देने का उपदेश नहीं करता है।
न वै भिन्ना: गौरवं प्राप्नुवन्ति
धर्मात्मा का वेषभूषा धारण करके , भगवान की पूजा उपासना व्रत उपवास आदि करने पर भी सामाजिक रूप से भेदभाव करनेवाले स्त्री पुरुषों को समाज में गौरव, सम्मान आदि प्राप्त नहीं होता। धर्मात्मा होते हुए भी, समाज में एक धार्मिक रूप से जाना जानेवाला व्यक्ति यदि ईष्र्या और द्वेष से भरकर किसी के साथ दुव्र्यवहार करता है, हठपूर्वक अपने से छोटों का अनादर करता रहता है, तथा मानव समाज में विघटन उत्पन्न करता है तो ऐसे व्यक्ति को समाज में आदर सम्मान गौरव आदि कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। भेदभाव करनेवाले स्त्री पुरुष दूसरों के प्रति दुर्भावना रखते हैं, तो समाज भी उसके प्रति दुर्भावना रखता है।
न वै भिन्ना: प्रशमं रोचयन्ति
भेदभाव करनेवाले स्त्री पुरुषों को शान्ति अच्छी नहीं लगती है। स्वयं अशान्त रहते हैं और दूसरों को भी आपस में लड़वाते हैं। विदुर जी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हे महाराज धृतराष्ट्र! आपने अपने ही भाई के पुत्रों के साथ बहुत भेदभाव किया है। दुर्योधन को आगे करके पाण्डवों को अपार दुख दिया है। उनके ही अधिकृत धन को नहीं दिया है। पाण्डवों के द्वारा भेजे हुए शान्तिप्रस्ताव को भी नहीं स्वीकार किया है। कुन्ती की पुत्रबधु द्रौपदी को बीच सभा में नग्न किया है। इतना सब धर्म के विरुद्ध करने पर भी चाहते हैं कि सुख और शान्ति मिले। शांति से निद्रा आए। भेदभाव करनेवाले शाशक के लाखों शत्रु बन जाते हैं। शत्रुओं को बनानेवाले स्त्री पुरुषों को स्वयं भी कहीं भी सुख शान्ति नहीं मिलते हैं। इसलिए धर्म के रहस्य को समझिए। धर्म कर्म के यथार्थ को जाननेवाले के हृदय से भेदभाव नष्ट हो जाता है। यदि भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते हैं तो, न कभी सुख मिलेगा और न ही शान्ति मिलेगी, और न ही सामाजिक सम्मान प्राप्त होगा।
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