आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
(1) जब दुख में मनुष्य फंस जाता है।
तब उसे समझ में आता है।।
धन वैभव इज्जत सबकुछ हो,
फिर भी मनुष्य मर जाता है।।
तब उसे समझ में आता है।।
(2) जिसके बल पर था अहंकार।
कहता था ईश्वर निराकार।।
दुख में हर दर पर जाता है,
कहता है, मैं अब गया हार ।।
जो नहीं किया, कर जाता है।
तब उसे समझ में आता है।।
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है।
(3) दुनियां कुछ दिनों का मेला है।
तन गुरू है , तन ही चेला है।
ये भीड़ बीच में है प्यारे!
तू अंत में सदा अकेला है।।
जब कभी अकेला पड़ जाता है।
तब उसे समझ में आता है।।
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है।
(4) चाहे जैसा भी हो भोगी।
निश्चित हो जाता है रोगी।
उनको ही सत्य मानता है,
जिनको पहले कहता ढोंगी।।
जब कर्मों में धंस जाता है।
तब उसे समझ में आता है।
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है।।
(5) आंखें थीं, फिर भी अंधा था।
उलटा सीधा सब धंधा था।
बंदूक चलाता था ये ही,
लेकिन अपनों का कंधा था।।
जब अपनों को ही खा जाता है।
तब उसे समझ में आता है।
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है।।
(6) श्री राम को बुरा बताता था।
रावण के मार्ग अपनाता था।
“ब्रजपाल” हेकड़ी निकल गई,
हो गया अजीर्ण जो खाता था।।
कुछ दिन जीकर मर जाता है।
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है
तब उसे समझ में आता है।।
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जब दुख में मनुष्य फंस जाता है
जब दुख में मनुष्य फंस जाता है
RAM KUMAR KUSHWAHASeptember 13, 2021
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