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Sunday, September 24, 2023
धर्म कर्म

जानो तो जानें

Visfot News

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
(1) जिस तन से सुख दुख भोगा है, क्या उस तन को जाना है?
किसने कैसे,इसे बनाया ? क्या बुद्धी ने माना है?
(2) मुझे पता है, कभी नहीं सोचा,इस तन के बारे में।
अन्दर कभी नहीं जा पाया, बैठा है बस,द्वारे में।
इतने दिन से संग रहा तन, फिर भी तू अनजाना है ?
किसने कैसे इसे बनाया? क्या बुद्धी ने माना है?
(3) बुद्धी भी दी है जिसने, तू उसको ही है नकार रहा।
जाने कितने जन्मों से तू, ऐसा ही मक्कार रहा।।
कहां से आया, कहां जाएगा, और कहां अब जाना है?
जिस तन से सुख दुख भोगा है क्या उस तन को जाना है?
(4) फट से “नहीं”, तो कह देगा, पर जानने की क्या इच्छा है?
उस पर भी तू “नहीं” कहेगा, पता है, ऐसी शिक्षा है।।
छोड़ नहीं सकता है कुछ भी , फिर भी छूटते जाना है ।
बड़ी उमर तक सबकुछ भोगा, फिर भी सब अनजाना है?
जिस तन से सुख दुख भोगा है, क्या उस तन को जाना है?
(5) बस, ये ही अज्ञान तुम्हारा, सारे दुख का कारण है।
तेरा लोभ, मोह ही प्यारे! उच्चाटन और मारण है।।
जाने कितनी बार मरा यों ही फिर से मर जाना है?
किसने कैसे इसे बनाया, क्या बुद्धी ने माना है?
(6) हमको क्या “ब्रजपाल” तुम्हारा जो होना होगा, होगा।
सोचा था,थोड़ा कुछ कह दूं, शायद ये जगता होगा।
सोचो तो खुद करना होगा, गर ये ज्ञान जगाना है।
मुझे पता है इस माया से, आज भी तू अनजाना है।
जिस तन से सुख दुख भोगा है, उससे ही अनजाना है?
किसने कैसे इसे बनाया, क्या बुद्धी ने माना है?

RAM KUMAR KUSHWAHA
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