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Sunday, September 24, 2023
धर्म कर्म

बेटा अनाचारी हो, औऱ अंतिम क्रिया कर्म न करे तो उनका उद्धार कैसे होगा

बेटा अनाचारी हो, औऱ अंतिम क्रिया कर्म न करे तो उनका उद्धार कैसे होगा

बेटा अनाचारी हो, औऱ अंतिम क्रिया कर्म न करे तो उनका उद्धार कैसे होगाबेटा अनाचारी हो, औऱ अंतिम क्रिया कर्म न करे तो उनका उद्धार कैसे होगा
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आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दावन
हमारे शास्त्र भगवान की आज्ञा औऱ शाश्वत शाशन विधान हैं। मनुष्य अपनी सामाजिक व्यवस्था के लिए नियम बनाते हैं।बहुत समय बाद परिस्थितियां बदलने पर फिर से नियम बनाए जाते हैं। इस प्रकार मनुष्य अपने दुखों को दूर करने के अनेक उपाय करते हैं किन्तु एक भी दुख दूर नहीं होते हैं।मरने के बाद तो यहां का कोई मनुष्य मरने वाले के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है। मत्स्य पुराण आदि में लिखा है कि यदि मरने वाले के लिए यदि किसी ने भी कुछ नहीं किया है तो उसका मित्र भी चाहे तो उसका श्राद्ध आदि कर सकते हैं। यहां तक कि स्कन्दपुराण में तो यहां तक लिखा है कि अपरिचित शव को अग्नि देनेवाले उतना ही पुण्य मिलता है, जितना कि एक बालक को पालकर बड़ा कर आजीविका देने का पुण्य होता है। अब देखिए कि यदि मरने वाले के लिए कोई भी कुछ भी नहीं करता है तो क्या होता है?
भागवत के 3 स्कन्ध के 27 वें अध्याय के 1 औऱ 2 श्लोक में भगवान कपिल ने मां देवहूति से कहा कि
स एष यर्हि प्रकृतेर्गुणेष्वभिविषज्जते।अहंक्रियाविमूढात्मा कर्तास्मीत्यभिमन्यते।।1।।
हे माँ ! यह भगवान का अंश निर्विकार आत्मा संसार में जब जन्म लेता है।शरीर धारी होता है, तब अज्ञान के कारण प्रकृति गुणों शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि को तन्मयता से भोगता है। अज्ञान के कारण ही वह शारीरिक बल, रूप आदि को अपना मानकर अहंकार भी करता है।मैं ही करता हूँ, ऐसा ही मानता है। सभी जीवों में यह होता है।अब देखिए उस अज्ञानी अहंकारी मनुष्य का क्या होता है ?
तेन संसारपदवीमवशोह्यभ्येत्य निर्वृत:।
प्रासङ्गिकै: कर्मदोषै: सदसन्मिश्रयोनिषु।।2।।
एक जीव जब स्त्री या पुरुष के शरीर में आता है तो स्त्री शरीर धारी जीवात्मा स्वयं को पत्नी, माता, बहू, बहिन मानता हुआ विविध प्रकार के अच्छे बुरे कर्म करता है।पति के, पुत्र के मोह में फंसा हुआ स्त्री रुप में जीवात्मा अपने कर्म दोषों के कारण वेवश हुआ पशु पक्षी, सांप विच्छू, कीड़े मकोड़े आदि योनियों में अपार दुख उठाता है।यदि कुछ अच्छे कर्म कुछ मोह लोभ के कारण स्वार्थ मेंं बुरे कर्म किए हैं, तो जैसा कर्म अधिक होगा, वैसी मनुष्य योनि भी प्राप्त हो जाएगी इसी प्रकार पुरुष शरीर धारी जीवात्मा अपनी पत्नी, पुत्र औऱ शरीर के लिए अनेक प्रकार के अच्छे बुरे कर्म करके मरने के बाद विविध योनियों के दुखों को भोगता है।यदि पुत्र ने कुछ आपके नाम से पुण्य, श्राद्ध आदि कर दिया तो ठीक है।नहीं तो जैसे आपने अपने माता पिता के दिए हुए घर संपत्ति को भोगते हुए अपने बालबच्चों को पाल कर बड़ा कर लिया है।औऱ लोभ के कारण माता पिता के लिए कुछ भी नहीं किया है।तो वो जैसे अपने कर्मों का फल भोग रहे होंगे, वही आपके साथ होगा।आप इक_ा कर के बच्चों को दे जाएंगे।अपने लिए कुछ पुण्य तीर्थ कुछ भी नहीं करेंगे तो वही होगा जो लिखा है।अर्थात फिर मनुष्य योनि भी नहीं प्राप्त होगी।

RAM KUMAR KUSHWAHA

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