आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
(1) बचपन से ये सुनते आया। विश्वास नहीं मैं कर पाया।
अब देख लिया इन आँखों से,
जो सुना वही अब सच पाया।
बूढ़े बुजुर्ग ये कहते थे कि
इक दिन ऐसा आएगा, मानव को मानव खाएगा।
(2) दो हजार इक्कीस और बाइस में आखिर देख लिया।
कि हर नर नारी से सतर्क रहना, अब हमने सीख लिया।।
अब जंगल हो गया नरसमाज, कोई न कोई खाएगा।
इक दिन ऐसा आएगा, मानव को मानव खाएगा।।
(3) घर रहे तो भूखे मर जाएंगे।
बाहर निकले तो डर जाएंगे।।
खांसी लेकर यदि घर आए,
तो मौत के द्वारे ले जाएंगे।।
अस्पताल के नरक में जाकर अपना ही कोई धर आएगा।
इक दिन ऐसा आएगा,मानव को मानव खाएगा।।
(4) सरकार के हर इक व्यक्ति के तन में, जब यमदूत समाएगा।
डाक्टर, नेता, नर्स पुलिस, हर जन यमराज दिखाएगा।।
तब ये बात सत्य ही निकली इक दिन ऐसा आएगा।
मानव को मानव खाएगा।।
(5) इससे ज्यादा अब क्या होगा?
जो हुआ वही अब फिर होगा।।
जब तक कोई राक्षस नहीं मिला, तबतक जिन्दा रह पाएगा।
“ब्रजपाल” सदा तैयार रहो, न जाने कब मर जाएगा।
इक दिन ऐसा आएगा, मानव को मानव खाएगा।।
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