Please assign a menu to the primary menu location under menu

Sunday, December 10, 2023
धर्म कर्म

गोपियों पर किए गए भगवान श्रीकृष्ण के अनुग्रह का नाम शरदपूर्णिमा है

गोपियों पर किए गए भगवान श्रीकृष्ण के अनुग्रह का नाम शरदपूर्णिमा है

वैरागी और रागी के मन में इतना अन्तर होता हैवैरागी और रागी के मन में इतना अन्तर होता है
Visfot News

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
श्रीमद् भागवत को वेदरूप कल्पवृक्ष का साक्षात् फल ही कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण भी वेदवेद्य हैं। इसलिए भागवत को ही श्री कृष्ण ही माना जाता है।
अब शरद् उत्सव पर थोड़ा विचार करते हैं।
भागवत के 10 वें स्कन्ध के 22 वें अध्याय के 27 वें श्लोक में चीरहरण लीला में गोपाङ्गनाओं को भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मानन्द प्राप्तियोग्य पात्र बना लिया था।
याताबला व्रजं सिद्धा मयेमा रंस्यथ क्षपा:।
यदुद्दिश्य व्रतमिदं चेरुरार्यार्चनं सती:।।
भगवान श्री कृष्ण ने गोपाङ्गनाओं से कहा कि –
यदुद्दिश्य व्रतमिदं चेरुरार्यार्चनं सती:
हे पतिव्रताओ! जिस उद्देश्य से आप सभी ने यह व्रत किया है, वह व्रत आपका फलीभूत होगा। इसलिए हे अबलाओ! अब आप अपने अपने घर चली जाओ। घर चलीं जाएंगीं तो व्रतपूर्ति का कोई फल कब मिलेगा ?
तब भगवान ने कहा कि –
मयेमा रंस्यथ क्षपा:
इमा: क्षपा: – ये जो रात्रियां हैं, इन सभी रात्रियों में मेरे साथ रमण करोगी।
भगवदानन्द प्राप्ति की योग्यता पात्रता तभी आती है, जब एक क्षण के लिए भी एक भी इन्द्रिय जगत के विषयों का चिंतन न करती हो। मात्र और मात्र अपने प्रियतम प्रेमास्पद का ही चिन्तन होता हो। उसी के लिए ही ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां समर्पित हो चुकीं हों। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों पर दूसरा अनुग्रह भी किया कि उनको विषयविमुख भी किया ।
इसी श्लोक के पहले भगवान ने कहा कि –
न मय्यावेशितधियां काम: कामाय कल्पते।
भर्जिता क्वथिता धाना प्रायो बीजाय नेष्यते।
आप सभी गोपियां घर चलीं जाएं, वहां अब आपको संसार का कोई भी शब्द, स्पर्श, रूप रस गन्ध आकृष्ट नहीं करेगा। क्योंकि मय्यावेशितधियां – जब किसी का मन मुझ परमानन्द में एकबार प्रविष्ट हो जाता है तो उसका मन उबले हुए तथा अग्नि में सेंके हुए अन्न के समान निर्बीज हो जाता है। जैसे उबला हुआ सेंका हुआ अन्न पुन: अंकुरित नहीं हो सकता है, उसकी अंकुरोत्पादिनी शक्ति ही नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार मुझमें प्रविष्टबुद्धिवालों की प्रवृत्ति पुन: सांसारिक कर्मों में नहीं होती है। इसप्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अनुग्रह करके गोपाङ्गनाओं के हृदय में वर्ष पर्यन्त विरहाग्नि प्रज्ज्वलित करके उनकी कर्मपरम्परा का विनाश कर दिया। इसलिए वरदान के एकवर्ष के बाद ही शरद् ऋतु में प्रेमदान प्रदान किया।गोपियों को पात्र बनाने के पश्चात् तथा एकवर्ष तक विरहाग्नि में गोपियों के मन और बुद्धि को सांसारिक विषयों से अधिक प्रबल बनाने के पश्चात् शरद् ऋतु की पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को ब्रह्मानन्दमय करने का विचार किया। भागवत के 10 वें स्कन्ध 29 अध्याय के प्रथम श्लोक में शुकदेव जी ने परीक्षित से भगवान श्री कृष्ण के तीसरे अनुग्रह को बताते हुए कहा कि –
भगवानपि ता: रात्री: शरदोत्फुल्लमल्लिका:।
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमाया मुपाश्रिता:।।
प्रेम में आनन्द भी प्रेमास्पद के अधीन होता है। गोपियां श्री कृष्ण के प्रति पूर्णसमर्पित हो चुकीं थी। इन्द्रियानन्द से विनिर्मुक्त भी हो चुकीं थीं। वो भी भगवान का ही अनुग्रह था, तो अब रमणीय का अतिप्रेष्ठ अतिरमणीय आनन्द भी भगवान के ही अधीन था। श्रृङ्गार रस का स्थायीभाव रति होता है। रति के बिना तो श्रृङ्गाररस भी आकृष्ट करने में असमर्थ होता है। रति की जागृति में सौन्दर्य, तथा प्राकृतिक लावण्य ही रति का उद्भावक होता है। विभाव, अनुभाव और संचारी आदि भाव , प्रियतम के प्रति उत्कट उत्कण्ठा जागृत करते हैं।
इसलिए, शरदोत्फुल्लमल्लिका:
शरद् ऋतुकालीन मल्लिकाएं,तथा विविध प्रकार के पुष्प भी पुष्पधन्वा को आहूत करतीं हैं। यह पुष्पधन्वा भी श्रीकृष्ण विषयक है। निरिन्द्रियानन्द को आह्लादक बनानेवाला है। श्रीकृष्ण तो साक्षात् आनन्द ही हैं, किन्तु अवाङ्मनसगोचर इन्द्रियातीत अवैषयिक ब्रह्मानन्द है। यह ब्रह्मानन्द भी पुरुषार्थजन्य नहीं है। श्रवण मनन निदिध्यासन के पश्चात् प्राप्त नहीं हो रहा है, अपितु स्वयं आनन्द ही गोपियों को आनन्दमय स्वरूप प्रदान करने के लिए अनुग्रह कर रहा है।
रन्तुं मनश्चक्रे
गोपियों के अन्त:करण में तो श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था, इसलिए श्री कृष्ण ने गोपाङ्गनाओं के हृदय को शुद्धभूमि देखकर आज गोपियों से रमण करने की इच्छा की। जीवात्मा के हृदय में अन्तर्यामी स्वरूप से विराजमान ब्रह्मानन्द स्वयं ही रमणीय है। इसलिए ऐकात्म्यभाव से भगवान ने रमणकामना कामना की तथा रमण कराया। पात्रता का निर्माण भी भगवान ही करते हैं, यह अनुग्रह है। अनुग्रहीत के साथ रमणीय कमनीय प्रेमास्पद की रमण कामना भी अनुग्रह है। अर्थात अनुग्रह का नाम ही रमण है। भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों पर अनुग्रह करके गोपियों को परमानन्दमय कर दिया। यही शरद् उत्सव है।

RAM KUMAR KUSHWAHA
भाषा चुने »