आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
विद्यारण्य स्वामी ने अपने पंचदशी ग्रंथ के कूटस्थदीप प्रकरण के 74 वें श्लोक में अल्पमति के मनुष्य की मानसिक स्थिति को बताते हुए कहा कि –
श्रुतितात्पर्यमखिलमबुद्ध्वा भ्राम्यते जड:।
विवेकी त्वखिलं बुद्ध्वा तिष्ठत्यानन्दवारिधौ।।
वेदों के मन्त्रों को परम्परा से गुरुजनों की सन्निधि में न पढऩेवाले मनुष्यों को, तथा वेदों के वास्तविक तात्पर्य को, तथा अर्थ को न जानने समझनेवाले मनुष्यों को, तथा वेदों में कही हुई विधि के अनुसार आचरण न करनेवाले मनुष्यों को सदा ही भ्रम बना रहता है। वेदों के मंत्र का मात्र उच्चारण करने से तथा अपनी बुद्धि के अनुसार अर्थ करने से बुद्धि की जड़ता नष्ट नहीं होती है और न ही भ्रम नष्ट होता है। किन्तु जिसने शास्त्रों में कहे गए तात्पर्य को समझ कर विवेक किया है, वह तो आनन्द समुद्र में मग्न हो जाता है। विवेकी पुरुष ही सर्वदा सर्वत्र आनन्दित रहता है। विद्यारण्य स्वामी ने शास्त्रों के वाक्यों को अपने बुद्धि के अनुसार अर्थ करनेवालों को सावधान करते हुए कहा कि –
जड़ अर्थात अविवेकी किसको कहते हैं?
श्रुतितात्पर्यमखिलमबुद्ध्वा भ्राम्यते जड
वेदों के अर्थ को जानते हुए भी जो पुरुष वेदों के वास्तविक तात्पर्य को नहीं समझते हैं, उनका भ्रम ही नष्ट नहीं होता है। वह जड़बुद्धि का ही बना रहता है। जब किसी स्त्री पुरुष को मात्र संसार के व्यवहार का ही ज्ञान होता है, मात्र भोग और भोजन का ही ज्ञान होता है, तो ऐसे स्त्री पुरुषों को जड़ कहा जाता है। मात्र तन, धन और परिवार के मोह में फंसे हुए स्त्री पुरुष घोर अविवेकी होते हैं। इसलिए वे अपने ही माता पिता, भाई बहिन, पति पत्नी, समाज के साथ ही क्रूरता करते हैं। काम, क्रोध लोभ, मोह, द्वेष, ईष्र्या आदि दुर्गुणों की अत्यधिक वृद्धि के कारण मनुष्य विवेकशून्य हो जाता है। सत्कर्मों को छोड़कर दुष्कर्मों में ऐसा प्रवृत्त हो जाता है कि वह अपना ही विनाश कर लेता है और अपने परिवार का भी विनाश कर लेता है, ऐसे स्त्री पुरुषों को जड़ अर्थात मूर्ख अविवेकी आदि शब्दों से कहा जाता है। पेड़, पौधे, पहाड़,लोहा,सोना आदि सभी को जड़ पदार्थ कहते हैं। सोने का आभूषण धारण करनेवाले स्त्री पुरुषों को तो अहंकार होता है, किन्तु सोने के आभूषण को अहंकार नहीं होता है कि मैं कैसे व्यक्ति के गले की शोभा बना हुआ हूं। खेत को भवन को तथा धन को अहंकार नहीं होता है कि मेरा स्वामी कितना बड़ा है। जिसके स्वयं ही विचार करने की शक्ति नहीं होती है, उसको जड़ कहते हैं। इसी प्रकार जिन स्त्री पुरुषों को अपने ही हित अहित का ज्ञान नहीं होता है, उनको भी जड़ कहा जाता है। जड़ पदार्थों के समान एक ही समान रहनेवाले स्त्री पुरुषों को जड़ कहा जाता है। इसी प्रकार कोई स्त्री पुरुष वेदों के मंत्रों का वास्तविक तात्पर्य नहीं समझता है और सभी मंत्रों को कण्ठस्थ करके बैठा हुआ है, फिर भी वह उसी स्वभाव का है, जैसा वह वेद पढऩे के पहले था। वैसा ही वेद पढऩे के बाद भी है तो समझिए कि उसने वेदों के वास्तविक तात्पर्य को नहीं समझा है। इसलिए वह वेद पुराणों के अर्थ को जानते हुए भी उसका भ्रम ही कम नहीं होता है तो नष्ट होने की तो बात ही क्या करना! वास्तव में वेदज्ञान का आनन्द किसको मिलता है तो बताते हैं – विवेकी त्वखिलं बुद्ध्वा तिष्ठत्यानन्दवारिधौ वेदों में कहे गए तात्पर्य को समझकर जो विवेकी होता है, वह वेदों के तात्पर्य को समझ कर आनन्द समुद्र में निमग्न हो जाता है। अपने आत्मस्वरूप को समझकर आनन्दमय हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि वेदों में, भागवत आदि पुराणों में तथा रामचरित मानस आदि रामायणों में कहे गए तात्पर्य को समझनेवाले स्त्री पुरुष ही भक्ति का तथा ज्ञान का आनन्द प्राप्त करते हैं। जो स्त्री पुरुष वेद,पुराण रामायण आदि का नित्य पाठ करके तथा उसको कण्ठस्थ करके यहां वहां उठते बैठते मात्र चर्चा ही करते रहते हैं, जैसा लिखा है, वैसा विचार नहीं करते हैं और वैसी क्रिया भी नहीं करते हैं तो वे जड़ ही हैं। पढऩे के पहले भी जैसे भ्रम में फंसे थे, अज्ञानी थे, वैसे ही उतने ही अविवेकी और अज्ञानी आज भी रहेंगे। न तो उनको ज्ञान होगा और न ही भक्ति होगी तथा न ही उनको वैराग्य ही होगा। इसी को थोथा ज्ञान कहते हैं।
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शास्त्रों का तात्पर्य समझने पर ही आनन्द प्राप्त होता है
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RAM KUMAR KUSHWAHAOctober 21, 2021
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