पं. सुदर्शन लव पांडेय
यज्ञादि अनुष्ठानों में तत्काल दक्षिणा न देनेसे हानि
कर्ता कर्मणि पूर्णेऽपि तत्क्षणात् यदि दक्षिणाम्। न दद्यात् ब्राह्मणेभ्यश्च देवेनाज्ञानतोऽथवा॥ मुहूर्ते समतीते च द्विगुणा सा भवेद् ध्रुवम्। एकरात्रे व्यतीते तु भवेद्रसगुणा च सा॥
त्रिरात्रे वै दशगुणं सप्ताहे द्विगुणा तत:।
मासे लक्षगुणा प्रोक्ता ब्राह्मणानां च वर्द्धते॥ संवत्सरे व्यतीते तु सा त्रिकोटिगुणा भवेत्। कर्म तद् यजमानानां सर्व वै निष्फलं भवेत्॥ स च ब्रह्मस्वापहारी न कर्मार्होऽशुचिर्नर:। दरिद्रो व्याधियुक्तश्च तेन पापेन पातकी॥
तद् गृहाद्याति लक्ष्मीश्च शापं दत्त्वा सुदारुणम्। पितरो नैव गृöन्ति तद्दत्तं श्राद्धतर्पणम्॥
एवं सुराध तत्पूजां तद्दतां पावकाहुतिम्।
दाता ददाति नो दानं ग्रहीता तन्न याचते॥ उभौ तौ नरकं यातश्छिन्नरज्जुर्यथा घट:।
नार्पयेद् यजमानश्चेद् याचितारं च दक्षिणाम्॥ भवेद ब्रह्मस्वापहारी कुम्भीपाकं व्रजेद् ध्रुवम्। वर्ष लक्षं वसेत्तत्र यमदूतेन ताडित:॥
ततो भवेत् स चाण्डालो व्याधियुक्तो दरिद्रक:। पातयेत् पुरुषान् सप्त पूर्वान् वे पूर्वजन्मन:॥ : (ब्रह्मवैवर्त प्रकृतिखण्ड 42।54 63 )
यज्ञादि कर्म के पूर्ण हो जानेपर भी दैववश अथवा अज्ञानवश ब्राह्मणोंको दक्षिणा न देनेसे प्रतिक्षण वह दक्षिणा द्विगुणित हो जाती है। एक रात बीत जाने पर वह छगुनी, तीन रात बीत जाने पर दशगुनी, सात दिन बीतने पर बीसगुनी, एक मास बीतने पर लाखगुनी, एक वर्ष बीतनेपर तीन करोड़ गुनी बढ़ जाती है और साथ ही यजमानका किया हुआ सम्पूर्ण कर्म भी सर्वथा निष्फल हो जाता है। वह यजमान ब्रह्मांशका चोर, सत्कर्मोके अयोग्य, अपवित्र होकर उसी भयङ्कर पापसे दरिद्र और व्याधियुक्त हो जाता है। उसके घरसे लक्ष्मी भी कठिन शाप देकर अन्यत्र चली जाती है। पितृगण भी उसके दिये हुए श्राद्ध, तर्पणादिको ग्रहण नहीं करते और देवगण उसकी पूजा तथा आहुति स्वीकार नहीं करते। देनेवाला दक्षिणा न देवे और पानेवाला याचक उससे दक्षिणाका तगादा न करे, ऐसी स्थिति में जिस प्रकार टूट जानेसे भरा हुआ घड़ा जलमें डूब जाता है उसी प्रकार दाता और ग्रहीता दोनों ही नरकको प्राप्त करते हैं। जो यजमान अपने वृत याचकके माँगनेपर भी दक्षिणा नहीं देता, वह ब्राह्मणांशका चोर होकर निश्चय ही कुम्भीपाक नामक नरकमें जाता है। वहाँ जाकर एक लाख वर्षतक यमदूतोंकी ताडऩाओंको सहता हुआ अन्तमें व्याधियुक्त, दरिद्र तथा चाण्डाल योनिमें उत्पन्न होकर अपने पूर्वकी सात पीढयि़ों को पतित कर देता है। श्रीमद् देवी भागवत में नवम स्कंध 45 में अध्याय 54 से 63 तक श्लोक यज्ञ दक्षिणा ना देने से अथवा विलंब करने से जो पाप होते हैं वह संपूर्ण वर्णन है यदि यज्ञके समय कर्ताके द्वारा संकल्पित दान नहीं दिया गया और प्रतिग्रह(आचार्य) लेनेवालेने उसे माँगा भी नहीं, तो वे दोनों ही (यजमान और ब्राह्मण) नरकमें उसी प्रकार गिरते हैं, जैसे रस्सी टूट जानेपर घड़ा।।
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यजमानों के लिए शास्त्रों की महत्वपूर्ण आज्ञा
RAM KUMAR KUSHWAHAAugust 23, 2021
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