आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
श्री मद् देवीभागवत के 9 वें स्कन्ध के 45 वें अध्याय के 65 वें 66 वें और 67 वें श्लोक में नारद जी के पूंछने पर भगवान नारायण ने कहा कि –
नारद जी ने भगवान नारायण से पूंछा कि –
यत्कर्म दक्षिणाहीनं को भुङ्ते तत्फलं मुने!
हे भगवान नारायण! यदि कोई यजमान किसी ब्राह्मण से पूजा, अनुष्ठान, यज्ञ,हवन विवाह आदि करवाने के बाद उचित दक्षिणा नहीं देता है, अथवा दक्षिणा ही नहीं देता है तो बिना दक्षिणा के किए गए उस सत्कर्म के फल को कौन भोगता है ? बिना दक्षिणा के उस कर्म का क्या फल होता है ?
नारद जी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान नारायण ने कहा कि –
कर्मणोह्यदक्षिणस्यैव कुत एव फलं मुने।
सदक्षिणे कर्मणि च फलमेव प्रवर्तते।।65।।
नरनारायण दोनों में से नारायण जी ने कहा कि हे मुने! पूजा, यज्ञ, श्राद्ध आदि सत्कर्म करवाने के बाद यजमान यदि ब्राह्मणों को उचित दक्षिणा नहीं देते हैं, अथवा दक्षिणा ही नहीं देते हैं तो यजमान को किए गए कर्म का फल कैसे मिलेगा? अर्थात बिना दक्षिणा दिए कोई भी सत्कर्म फलीभूत नहीं होता है।
सदक्षिणे कर्मणि च फलमेव प्रवर्तते ।
दक्षिणा सहित सत्कर्म ही फल प्रदान करता है। बिना दक्षिणा के तो कोई भी सत्कर्म अधूरा होता है।
अदक्षिणं च यत्कर्म तद् भुङ्क्ते च बलिर्मुने।
बलये तत्प्रदत्तं च वामनेन पुरा मुने।।66।।
भगवान नारायण ने कहा कि हे नारद! जब वामन अवतार हुआ था तो भगवान वामन ने ही महाराज बलि को ये वरदान दिया था कि जो यजमान, यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान आदि करवाने के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं देता है तो उस यजमान के बिना दक्षिणावाले सत्कर्म के फल को तुम ग्रहण कर लेना। यजमान को उसका कोई फल नहीं मिलता है। सत्कर्म करवाने के पहले जैसा था, वैसा ही वह बिना दक्षिणा के पूजा अनुष्ठान यज्ञ आदि वाला रहेगा। उसका सबकुछ व्यर्थ हो जाएगा।
अब सबसे महत्त्वपूर्ण बात 67 वें श्लोक में देखिए कि
भगवान वामन ने महाराज बलि से कहा कि पूर्ण दक्षिणा देने के बाद भी ऐसे यजमानों के सत्कर्म के फल को भी ग्रहण कर लेना।
अश्रोत्रिय: श्राद्धद्रव्यमश्रद्धादानमेव च।
गुरावभक्तस्य कर्म बलिर्भुक्ङ्ते न संशय:।।
हे नारद! भगवान वामन ने महाराज बलि से कहा था कि जो व्यक्ति बिना श्रद्धा के ही, बिना बैदिक बिधि के ही, श्राद्ध करता है, बिना श्रद्धा के कुछ भी दान करता है, जिस यजमान को ब्राह्मण के प्रति भी श्रद्धा नहीं होती है, ऐसे यजमान कितना भी धन खर्च कर दें, कितनी भी दक्षिणा दे दें , फिर भी उस अश्रद्धालु के सत्कर्म के फल को भी ग्रहण कर लेना।
अर्थात बिना श्रद्धा के तथा बिना दक्षिणा के किसी भी पाठ, अनुष्ठान पूजा यज्ञ आदि सत्कर्म का फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए सभी को ब्राह्मण में श्रद्धा, विश्वास करते हुए पूर्ण दक्षिणा के सहित सत्कर्म करना चाहिए, तभी शुभ फल प्राप्त होता है और कामना पूर्ण होती है।
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पूजा पाठ की कमदक्षिणा देनेवाले तथा दक्षिणा न देनेवाले यजमान के कर्म का फल कौन लेता है?
पूजा पाठ की कमदक्षिणा देनेवाले तथा दक्षिणा न देनेवाले यजमान के कर्म का फल कौन लेता है?
RAM KUMAR KUSHWAHASeptember 25, 2021
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