आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
महाभारत के उद्योग पर्व के 39 वें अध्याय के 61 वें श्लोक में विदुर जी ने धृतराष्ट्र से कहा कि –
दु:खार्तेषु प्रमत्तेषु नास्तिकेष्वलसेषु च।
न श्रीर्वसत्यदान्तेषु ये चोत्साहवर्जिता:।।
(1) दुखी, रोगी के यहां,
(2) प्रमत्त अर्थात अहंकारी के यहां,
(3) नास्तिक के यहां,
(4) आलसी के यहां,
(5) अदान्त अर्थात जिसकी इन्द्रियां स्वतन्त्र हैं,
(6) उत्साहहीन के यहां,
6 दुर्गुण जिन स्त्री पुरुषों के शरीर में होते हैं, उनके पास लक्ष्मी बहुत दिनों तक निवास नहीं करती है। अर्थात उनको कितना भी धन दे दिया जाए , कुछ ही समय में वे दरिद्र हो जाते हैं।
दु:खार्त
दुखी रोगी मनुष्य का धन जो भी लेता है, फिर लौटाकर नहीं देता है। वैद्य,डाक्टर ,सेवक, आदि सभी कोई उसके धन को दुगना तिगुना लेकर उसके दुख दूर करने की आशा मात्र देते हैं। इस प्रकार शारीरिक मानसिक दुख से पीडि़त स्त्री पुरुषों को समाज का हर व्यक्ति खाता है, लूटता है।
प्रमाद करनेवाल
जो व्यक्ति व्यापार आदि में धन खर्च करता है, किंतु फिर अपने व्यापार में प्रमाद करता है। पैसे का लेन देन अच्छी प्रकार से नहीं करता है, व्यापार में लगाया गया उसका धन भी चला जाता है और ऋणी भी हो जाता है। इसलिए अपने कार्य में प्रमाद करनेवाले स्त्री पुरुषों के यहां करोड़ों की सम्पत्ति कुछ दिनों बाद समाप्त हो जाती है। अर्थात लक्ष्मी जी ऐसे प्रमादी के यहां निवास नहीं करतीं हैं।
नास्तिक
जो स्त्री पुरुष भगवान को नहीं मानते हैं, वेद पुराण की बात नहीं मानते हैं, वही नास्तिक हैं। ऐसे नास्तिक कभी अच्छे व्यक्ति के पास ही नहीं जाते हैं। नास्तिक स्त्री पुरुषों के धन को उनके ही दुष्ट दुर्गुणी लोग ही खा जाते हैं। जिस धन का उपयोग दया, धर्म आदि सत्कर्मों में नहीं होता है, उसके धन को उसके जैसे ही लोग खा जाते हैं। अर्थात नास्तिक के पास भी लक्ष्मी जी बहुत समय तक नहीं रुकतीं हैं।
आलसी
आलसी स्त्री पुरुषों के घर को लक्ष्मी जी और भी जल्दी त्याग देतीं हैं। क्यों स्वच्छता और पवित्रता में ही लक्ष्मी जी निवास करतीं हैं। धन होते हुए भी जो दरिद्र के समान रहते हैं, फिर वे दरिद्र ही हो जाते हैं।
अदान्त
जो अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित रखते हैं, उसको दान्त कहते हैं। जिनकी जिह्वा नेत्र आदि इन्द्रियां स्वतन्त्र होकर संसार के पदार्थों का सेवन करतीं हैं, उसे अदान्त कहते हैं। खाने पीनेवाले, मदिरा पान करनेवाले, मांसभक्षण करनेवाले तथा व्यभिचारी के यहां लक्ष्मी जी बहुत दिनों तक नहीं रहती है। भोगी विलासी का धन उसके ही जैसे भोगी विलासी लोग ही भोगकर समाप्त कर देते हैं।
उत्साहहीन
जिसको धन से उनकी कमाने का उत्साह नहीं रहता है, वह रखे हुए धन को भला कब तक खा पाएगा ? अर्थात अकर्मण्यता ही उसकी दरिद्रता का कारण है। इसलिए आज भी यदि कोई स्त्री पुरुष आपको दरिद्र मिलेगा तो अवश्य ही उसमें इन छहों दुर्गुणों में से कोई न कोई एक दुर्गुण मिल ही जाएगा। इन दुर्गुणों के विरुद्ध गुणोंवाले स्त्री पुरुषों के यहां लक्ष्मी जी सदा निवास करतीं हैं। सद्गुणों में लक्ष्मी जी का वास होता है और दुर्गुणों में दरिद्रता का वास होता है। अब आपको ही सोचना है कि सद्गुण धारण करना है कि दुर्गुण धारण करना है।
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इन छै दुर्गुणों के कारण ही स्त्री पुरुष बहुत जल्दी दरिद्र हो जाते हैं
RAM KUMAR KUSHWAHAAugust 26, 2021
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