आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
रामचरित मानस के अयोध्या काण्ड के 192 दोहे की तीसरी, चौथी और 5 चौपाई में छींक का शकुन बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि –
दीख निषादनाथ भल टोलू।
कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू।।3।।
राम जी को मनाने के लिए भरत जी माताओं को तथा गुरु वसिष्ठ जी को साथ लेकर चित्रकूट जा रहे थे। भरत जी को सेना सहित आते देखकर निषादराज गुह के मन में आया कि भरत जी, श्री राम जी से लडऩे के लिए जा रहे हैं। ऐसा विचार उनका स्वयं का ही था। भरत जी के हृदय में तो भक्तिभावमय शुद्ध प्रेम ही था। निषादराज ने अपने निषादों को बुलाकर भरत जी से युद्ध करने की पूर्ण तैयारी देखकर कहा कि –
कहेउ बजाउ जुझाऊ ढोलू
बीरों के उत्साहवर्धन के लिए युद्ध के पूर्व में ही बजाए जानेवाले जुझाऊ ढोल बजाओ।
जैसे ही युद्ध के ढोलों को बजाने का आदेश दिया उसी समय शकुनस्वरूप हुआ।
एतना कहत छींक भइ बाएं।
कहेउ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।।4।।
जुझारू ढोल बजाओ, बस, इतना कहते ही निषादराज के बाईं ओर खड़े हुए किसी निषाद को छींक आ गई। बाईं ओर से छींक होते ही (शकुन) सगुन के जाननेवालों ने कहा कि –
खेत सुहाए
खेत अर्थात क्षेत्र, क्षेत्र अर्थात स्थान, समय अच्छा है।
शकुन के जाननेवालों में से किसी ने कहा कि वृद्ध व्यक्ति से पूंछिए कि बाईं ओर छींक हो जाए तो क्या फल होता है?
बूढ़ एक कह सगुन बिचारी।
भरतहि मिलिअ न होइहि रारी।।
शकुन जाननेवालों में से एक वृद्ध पुरुष ने कहा कि बाईं ओर छींक हो जाए तो रुककर विचार करना चाहिए। मन में आनेवाले विपरीत विचारों के विपरीत कार्य हो जाता है। जैसा मन में आ रहा है कि भरत जी, श्री राम जी से युद्ध करने जा रहे हैं, ऐसा नहीं होगा।आप लोग सबसे भरत जी से मिलिए। भरत जी से युद्ध नहीं होगा।
भरतहि मिलिअ न होइहि रारी।
भरत जी से मिलकर देखिए, युद्ध ही नहीं होगा।
अब शकुन का फल बताते हुए एक बृद्ध पुरुष ने कहा कि –
रामहि भरत मनावन जाहीं।
सगुन कहइ अस विग्रह नाहीं।।
बाईं ओर की छींक का शकुन कहता है कि भरत जी, श्री राम जी मनाने जा रहे हैं। विग्रह अर्थात युद्ध करने नहीं जा रहे हैं। इस प्रसंग को पढ़कर शकुन अशकुन का अद्भुत विज्ञान समझ में आ रहा है। आजकल के पढ़े लिखे लोगों के इतना भी समझ में नहीं आता है कि जब ये यान्त्रिकविज्ञान का युग नहीं था तो इनके पूर्वज प्राकृतिक आपदाओं से तथा सामाजिक आपदाओं से कैसे अपनी रक्षा करते थे? इनके पूर्वज थे तभी तो आज ये दुनियां में आए हैं। बिना विज्ञान के ही पहले के लोग बलवान तो होते ही थे, और आपदाओं से बचने के लिए बुद्धिमान भी होते थे, तभी तो आज इस मानवसृष्टि की परम्परा चल रही है। शरीर के अंगों में छिपकली के गिरने का सगुन अपसगुन विचार होता है। बिल्ली के मार्ग काटने का तथा मृत्यु सूचक अपशकुन होते हैं। हर्ष के भी शकुन होते हैं। जिसका अच्छा फल होता है, उसको शकुन कहते हैं और जिस लक्षण से हानि होती है, उसे अपशकुन कहते हैं। वाराहीसंहिता (वृहत्संहिता) ग्रंथ में पृथकरूप से एक शकुनाध्याय ही है। भगवान ने मनुष्य जाति को सजग करने के लिए अनुकूलता प्रतिकूलता जानने के लिए प्रकृति को ही लक्षणरूप में उपस्थित कर दिया है। प्राकृतिक रूप से छींक, कुत्ते, बिल्ली, सियार, आदि पशुओं की ध्वनि को जानने का ज्ञान दिया है। पक्षियों को भी सगुन अपसगुन में रखा है। मेघों को भी, तथा पूर्वदिशा पश्चिम उत्तर दक्षिण दिशाओं से बहनेवाली हवा से भी अनुकूलता प्रतिकूलता के लक्षण दिए हैं। आकाशमण्डल के तारागणों को देखकर कितनी रात्रि शेष है, इसका ज्ञान पहले के सभी किसानों को होता था। इस वर्ष कैसी वर्षा होगी, वर्षा होगी कि नहीं, ये सब सगुन अपसगुनों के द्वारा ज्ञात हो जाता है । आजकल के पढ़े लिखे लोग ही वास्तव में प्राकृतिक ज्ञान के लिए अशिक्षित कहे जाना चाहिए। डाक्टरों को बिना मशीन के रोगों का तथा शरीर की स्थिति का ज्ञान ही नहीं हो होता है। एक ज्ञान की उत्पत्ति होती है तो प्रथम ज्ञान विलुप्त हो जाता है। आजकल के लोगों को हिसाब लगाने के लिए यंत्र चाहिए। गणना करना, हिसाब करने में आजकल के पढ़े लिखे लोगों को देर लगेगी। क्योंकि बुद्धि का परिश्रम होना बंद हो गया है। पहले बैंकों आदि सभी जगह में कागज में स्वयं ही हिसाब करते थे।
खैर! छोडि़ए! आज के बुद्धिमानों के बुद्धि की चर्चा करना ठीक नहीं है।
इसलिए आप सभी सगुन अपसगुन को मानें, या न मानें, किंतु जो प्राकृतिक ढंग से होता है, वह तो होके ही रहेगा।ज्ञान, कभी भी न तो व्यर्थ होता है और न ही निरर्थक होता है।
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क्या आप छींक का शकुन मानते हैं?
क्या आप छींक का शकुन मानते हैं?
RAM KUMAR KUSHWAHASeptember 26, 2021
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