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Sunday, September 24, 2023
धर्म कर्म

बिना आध्यात्मिक साधनों के मन नहीं रोक सकते हैं

Visfot News

आचार्य ब्रजपाल शुक्ल,वृंदावन धाम
माण्डूक्य उपनिषद के, अद्वैत प्रकरण के 41 वें औऱ 42 वें मन्त्र मेंं कहा है कि-
मनसो निग्रहायत्तमभयं सर्वयोगिनाम्।
दु:खक्षय: प्रबोधश्चाप्यक्षया शान्तिरेव च।।40।।
योगियों को जो निर्भयता प्राप्त हुई है ,उनके दुखों का नाश हुआ है ,तथा जो ज्ञान हुआ है ,औऱ उन्हें जो मोक्ष नाम की अक्षय शान्ति मिली है , इन सबका कारण मन का निग्रह ही है।
अब दूसरा मन्त्र देखिए।
उपायेन निगृöीयात् विक्षिप्तं कामभोगयो:।
सुप्रसन्नं लये चैव यथा कामो लयस्तथा।।42।।
मन में उत्पन्न होने वाली कामना प्राय: सांसारिक सुख के लिए ही होती है।इसलिए प्रत्येक कामना की पूर्ति के लिए स्वयं को नहीं लगाना चाहिए।कामना का उदय तो सहज ही होता है किन्तु परिश्रम तो मनुष्य को ही करना होगा।कामनाओं मेंं तथा भोगों मेंं विक्षिप्त मन को जप ,तप आदि उपायों से रोकना चाहिए। अत्यंत प्रसन्न मन का भी निग्रह करना चाहिए।प्रसन्न मन भी उतना ही अनर्थकारी है ,जितना कि कामना अनर्थकारिणी है। शास्त्रों में जो जप आदि का फल बताया गया है कि तीर्थ स्थल में जप करने से सौ गुना फल मिलता है। इत्यादि लोभ ,मनुष्य को प्रवृत्ति कराने के लिए है। माला एक प्राथमिक साधन है ,मन को लगाने के लिए। बिना माला के मानसिक जप होने लगे , इसलिए ये साधन बताए गए हैं।बच्चों के लिए अ आ इ ई आदि रटाने के लिए लिखे लिखाए के ऊपर लिखवाया जाता है । सीख जाने के बाद फिर उस विधि की कोई आवश्यकता नहीं है।इसीप्रकार माला औऱ मालाओं की संख्या तो अध्यात्म की ओर आकर्षित करने का साधन है।औऱ उसका फल बताना भी एकमात्र साधन है।मन के नियमित निगृहीत हो जानेपर तो न फल की इच्छा रहेगी औऱ न ही माला की।ज्ञान होने पर तो ये सब कुछ प्राथमिक ही समझ में आ जाएगा। हृदय को इष्टदेव का अनुरागी बनाने का साधन ,मात्र साधन है। इसी को साधना भी कहते हैं। इसलिए जब तक मन कामना का त्याग न कर दे , तब तक माला का सहयोग लेना चाहिए।औऱ जप के फल का लोभ भी रखना चाहिए।किन्तु मन को स्थिर करने का उपाय करने में लगे रहना चाहिए।

RAM KUMAR KUSHWAHA
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