आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
स्वामिनारायण भगवान ने अपने आश्रित सभी भक्तों को संयम नियम के साथ साथ भगवान की भक्ति को तथा वैराग्य को दृढ़ रखने के लिए आदेश स्वरूप शिक्षापत्री के 34 वें श्लोक में आज्ञा देते हुए कहा कि –
ज्ञानवार्ता श्रुतिर्नार्या मुखात् कार्या न पूरुषै:।
न विवाद: स्त्रिया कार्यो न राज्ञा न च तज्जनै:।। शिक्षापत्री – 34।।
पुरुषों को स्त्री के मुख से ज्ञानवार्ता नहीं सुनना चाहिए।पुरुषों को पुरुषों के मुख से ही ज्ञानवार्ता सुनना चाहिए,और न ही स्त्रियों के साथ किसी भी प्रकार का विवाद करना चाहिए। राजा अर्थात देश के शाशक के साथ विवाद नहीं करना चाहिए, और न ही शाशक के किसी भी कर्मचारियों के साथ विवाद करना चाहिए। इनके साथ विवाद करने से, विवाद करनेवाले को अनेक प्रकार की आपत्तियां विपत्तियां सहज में ही आ जाती हैं।
आइए थोड़ा विचार कर लिया जाए!
ज्ञानवार्ता श्रुतिनार्या मुखात् कार्या न पूरुषै: –
इस सृष्टि में पुरुष जाति के जीवों में स्त्री जाति के प्रति जन्म से ही आकर्षक भावना रहती है।
मनुष्य में जो गुण जन्म से नहीं होता है, उसी के लिए शास्त्रों में विधान किया जाता है। तथा जो दुर्गुण जन्म से होता है, उसको न करने का विधान किया जाता है। तथा जिस दुर्गुण से सहज में ही सामाजिक पतन होता है , उसको नियन्त्रित करने के लिए ही संयम नियम का विधान किया जाता है। जैसे – किसी भी स्त्री पुरुष में जन्म से ही सत्य बोलने का स्वभाव नहीं होता है। प्राय: प्रत्येक स्त्री पुरुष भय के कारण अथवा किसी लोभ के कारण असत्य ही बोलते हैं। किसी भी बच्चे को ये नहीं सिखाना पड़ता है कि झूठ कैसे बोला जाता है, और कब बोला जाता है तथा किससे और कैसे बोला जाता है। किन्तु सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है कि बेटा! झूठ नहीं बोलना चाहिए। यदि कोई झूठ बोलता है तो सुननेवाले को उस पर क्रोध,घृणा ,ईष्र्या द्वेष आदि होने लगते हैं।
इसी प्रकार धोखा देना, बेईमानी करना तथा अन्य भी काम क्रोध लोभ मोह द्वेष ईष्र्या आदि करना किसी को भी नहीं सिखाना पड़ते हैं। ये दुर्गुण तो जन्मजात हृदय में होते हैं। इन दुर्गुणों के ठीक विपरीत सत्य, दया, सौहार्द, ईमानदारी आदि गुणों को सिखाना पड़ता है। स्त्रियों के प्रति पुरुषों की आकर्षक भावना जन्मजात ही होती है, तथा स्त्रियों के हृदय में पुरुषों की प्रति आकर्षक भावना जन्मजात ही होती है। ये आकर्षक भावना की प्रबलता को नियन्त्रित करने के लिए ही धर्म का उपदेश दिया गया है। श्रद्धा, विश्वास, सत्य, संयम, नियम, आदि गुणों को जागृत करानेवाला एकमात्र धर्म ही तो है। धर्म की सुदृढ़ता के लिए और सत्कर्म करने के लिए ही नियमों को मानना आवश्यक होता है। जिसने भी नियमों का दृढ़ता से पालन नहीं किया है, वही झूठ, बेईमानी, भोगवृत्तिवाला , संग्रहवृत्तिवाला हो जाता है।जैसे स्वस्थ अवस्था में व्यक्ति को सिखाया जाता है कि ये नहीं खाना चाहिए, ये नहीं पीना चाहिए, यदि स्वास्थ्य के विपरीत भोजन, परिश्रम आदि करेंगे तो अस्वस्थ हो जाएंगे। अर्थात स्वस्थ अवस्था में भी परहेज करना चाहिए तथा अस्वस्थ अवस्था में तो परहेज करना ही पड़ेगा। यदि खाने पीने का परहेज नहीं किया तो अधिक दिनों तक स्वस्थ भी नहीं रहेंगे और अस्वस्थ में परहेज नहीं किया तो शरीर भी बहुत दिनों तक नहीं रहेगा। इसी प्रकार संयम नियम के द्वारा ही अपनी जन्मजात दुर्गुणवृत्ति का नियन्त्रण किया जा सकता है। अन्यथा मनुष्य समाज में दुव्र्यवस्था अव्यवस्था फैल जाती है।
इसीलिए भगवान स्वामिनारायण ने कहा कि –
ज्ञानवार्ता श्रुतिर्नार्या मुखात् कार्या न पूरुषै:
ज्ञानवान, संयम नियमनिष्ठ, विद्वान पुरुषों के मुख से ही पुरुषों को भगवान की कथा आदि श्रवण करना चाहिए। स्त्रियों के मुख से ज्ञानवार्ता सुनते सुनते पुरुष के हृदय में दबे हुए जन्मजात काम आदि दुर्गुणों की जागृति होना संभव है। क्योंकि मनुष्य प्रकृति के स्वाभाविक नियमों के आगे सदा ही निर्बल और असहाय होता है। प्रकृति ही बलवान होती है, कोई भी स्त्री या पुरुष बलवान नहीं होते हैं। दुर्भावना का नियन्त्रण करना बहुत ही दुष्कर कार्य है। बाहर के शत्रुओं को तो अस्त्र शस्त्र के द्वारा रोका जा सकता है, किन्तु आन्तरिक काम, क्रोध लोभ आदि के जागृत होने पर कोई बाहरी उपाय नहीं किया जा सकता है। इन काम, क्रोध आदि दुर्गुणों को जागृत करनेवाले व्यक्ति, स्थान , पदार्थ से दूर रहने के अतिरिक्त और कोई दूसरा उपाय ही नहीं है। इसलिए अतिदुर्लभ अमूल्य भगवान की कथा को भी तथा ज्ञानवार्ता को भी स्त्री के मुख से सुनने के लिए निषेध किया गया है। स्त्री के मुख से कथा प्रवचन सुनने पर, ज्ञान भक्ति और वैराग्य जागृत होने की सम्भावना कम है,किन्तु कामभावना जागृत होने की सम्भावना अधिक है, और निश्चित ही है। क्योंकि ये स्वाभाविक है,और प्राकृतिक है। सभी जीव, प्रकृति के आगे निर्बल और असहाय हैं।
न विवाद: स्त्रिया कार्या
स्त्री से विवाद भी नहीं करना चाहिए। अपनी पत्नी, माता, बहिन, मौसी आदि से भी विवाद नहीं करना चाहिए, और की तो बात ही क्या है? पुरुष का इनसे विवाद होता है तो क्रोध में आकर कुछ भी अमर्यादित कार्य हो जाते हैं। जो नहीं कहना चाहिए, वो भी कह जाते हैं। विवाद न करने में ही प्रेम भावना स्थिर रहती है।
न राज्ञा न च तज्जनै:
राजा अर्थात राज्यशाशक ।
शाशक ही बलवान होता है, जनता बलवान नहीं होती है। इनसे विवाद करने पर शाशक ही जनता को हानि पहुंचा सकता है। शाशक के किसी भी विभाग के किसी भी कर्मचारियों के साथ विवाद करना, जीवन में अशान्ति और दुख का कारण होता है। संयम, नियम,सुख शान्ति पूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए अपने धर्म का पालन करना बहुत आवश्यक है। जो स्त्री पुरुष, संयम नियम के विपरीत चलने लगते हैं, उनके जीवन में अशान्ति ही अशान्ति रहती है। यदि आप धार्मिक हैं तो धर्मयुक्त नियमों का पालन भी करिए।
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ये नैसर्गिक है कि स्त्री के मुख से प्रवचन सुनकर पुरुष को ज्ञान और वैराग्य नहीं होता है?
ये नैसर्गिक है कि स्त्री के मुख से प्रवचन सुनकर पुरुष को ज्ञान और वैराग्य नहीं होता है?
RAM KUMAR KUSHWAHASeptember 29, 2021
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