आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
श्रीमद् देवीभागवत के 6 वें स्कन्ध के 30 वें अध्याय के 25 वें और 26 वें श्लोक में भगवान नारायण ने नारद जी से कहा कि –
दुर्लभो मानुषो देहो प्राणिनां क्षणभङ्गुर:।
तस्मिन् प्राप्ते तु कर्तव्यं सर्वथैवात्मसाधनम्।। 25।।
दुर्लभो मानुषो देह: प्राणिनां क्षणभङ्गुर:
सभी प्राणियों के शरीर प्राप्त होना सुलभ हैं, किन्तु मनुष्य जाति का शरीर प्राप्त होना दुर्लभ है।
अब देखिए कि मनुष्य जाति की स्त्री और पुरुष बनना क्यों दुर्लभ है?
भगवान नारायण ने कहा कि हे देवर्षि नारद! संसार में जितने भी प्रकार के प्राणियों के शरीर हैं, सभी प्रकार के शरीरों में मनुष्य जाति के शरीर से अधिक बल होता है। अधिक भोग और भोजन भी सर्वत्र प्राप्त होता है। मनुष्य को छोडक़र किसी भी जीव को भोजन और भोग की सुविधा एकत्रित नहीं करना पड़ती है। कोई भी पुरुष जाति का जीव, किसी भी अपनी जाति की स्त्री के साथ भोग कर सकते हैं। सामाजिक बन्धन नहीं होता है और न ही कोई समय स्थान का प्रतिबंध होता है, तथा न ही कोई मर्यादा या आयु का बंधन होता है। इसी प्रकार सभी स्त्री जाति के जीव अपनी जाति के किसी भी पुरुष जाति के जीव से कहीं भी कभी भी भोग कर सकती है। किसी से भी संतान उत्पन्न कर सकती है। संतान को कुछ दिनों तक ही पालन पोषण करके मुक्त हो जाते हैं। भोग और भोजन की तीव्र इच्छावाले स्त्री पुरुषों को तो देखने से लगता होगा कि मनुष्य जाति में तो बड़े बन्धन हैं, इससे अच्छे तो दूसरे योनि के जीव हैं। कहीं भी सो जाओ, कहीं भी मलमूत्र कर लो और कहीं भी खाओ तथा किसी से भी भोग कर लो। जितनी स्वतन्त्रता पशु पक्षियों के समाज में है, उतनी स्वतन्त्रता मनुष्य समाज में भी होना चाहिए थी। मनुष्य बनने में नियम के बन्धन हैं और ऊपर से परिश्रम करके खाना दाना जुटाना पड़ता है।
इसलिए पशु पक्षी कीट पतंग ही बनना अच्छा है। लेकिन भोग और भोजन के लालची स्त्री पुरुषों को ये विचार नहीं आते हैं कि जब पानी नहीं बरषता है, नदियां, नाले सूख जाते हैं, घास पात कम हो जाते हैं तो फिर इन पशु पक्षियों की तथा कीट पतंग योनियों की भूख प्यास और रोग से तड़प तड़प कर कितनी भयानक मृत्यु होती है। और फिर युवावस्था भी सभी शरीरों में थोड़े दिनों तक ही रहती है। भोग और भोजन थोड़े दिनों तक ही भोग पाते हैं। बाद में तो न भोग सकते हैं और न ही भोजन भी पचा सकते हैं। युवावस्था के वर्ष कम होते हैं और वृद्धावस्था की आयु तो अनेक वर्षों तक रहती है। मनुष्य जाति का शरीर इसलिए दुर्लभ है ,क्योंकि रोग होने पर औषधि का उपयोग कर सकते हैं। नदियों का पानी सूख जाने पर कुआं तालाब खोदकर पानी निकाल सकते हैं। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए विज्ञान उत्पन्न कर सकते हैं। आज मनुष्य जाति ने अपनी बुद्धि से मोबाइल से लेकर मिसाइलें तक बना लिए हैं। सुख के सभी साधन उत्पन्न कर सकते हैं। पशु पक्षी आदि जीव ये सब कुछ नहीं कर सकते हैं। प्रकृति के अनुसार ही जीना पड़ता है। तो अब विचार करिए कि भोग और भोजन के अतिरिक्त मनुष्य जाति के स्त्री पुरुषों को और क्या करना चाहिए?
तस्मिन् प्राप्ते तु कर्तव्यं सर्वथैवात्मसाधनम्
ये सबसे कोमल और धक्का लगते ही एक क्षण में भंगुर अर्थात भंग नष्ट होनेवाले मनुष्य जाति के शरीर को प्राप्त होने पर मनुष्य को आत्मज्ञान के लिए प्रयास करना चाहिए। संसार के अन्य शरीरों में इतनी बुद्धि नहीं होती है, जितनी बुद्धि मानव शरीर में होती है। इसलिए भोग और भोजन के अतिरिक्त मनुष्य जाति को भक्ति प्राप्ति के लिए तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए भी प्रयत्नशील होना चाहिए।
अब 26 वां श्लोक देखिए –
जिह्वोपस्थरसो राजन् पशुयोनिषु वर्तते।
ज्ञानं मानुषदेहे वै नान्यासु च कुयोनिषु।। 26।।
इस शरीर में दो इन्द्रियों से ही आनन्द आता है।
(1) जिह्वा से स्वादिष्ट भोजन का ।
(2) उपस्थ अर्थात स्त्री को पुरुष
संयोग का और पुरुष को स्त्री संयोग का आनन्द जिस इन्द्रिय से प्राप्त होता है, उसे उपस्थ कहते हैं। किन्तु जिह्वा और उपस्थ का आनन्द तो सभी योनियों के शरीरों से प्राप्त होता। यदि मनुष्य जाति का शरीर प्राप्त करके भी मात्र जिह्वा और उपस्थ का सुख लेने में ही पूरा जीवन निकाल दिया है, तो वह विचारहीन अविवेकी स्त्री पुरुषों में और पशुओं पक्षियों में कोई अन्तर नहीं है। क्योंकि वह तो इन दोनों इन्द्रियों के लिए ही ऐसे व्याकुल रहता है जैसे पशु व्याकुल रहते हैं। इन दो सुखों के लिए ही पशु पक्षी आपस में जीवन पर्यंत लड़ते मरते रहते हैं। पशुओं पक्षियों जैसी वृत्ति का मनुष्य तो पशु पक्षी ही समझना चाहिए।
ज्ञानं मानुषदेहे वै
ज्ञान तो मात्र मनुष्य जाति के स्त्री पुरुषों को ही हो सकता है।
नान्यासु च कुयोनिषु
अन्य किसी भी योनि के शरीर में ज्ञान नहीं होता है।मनुष्य योनि के सामने तो पशु पक्षी आदि सभी कुयोनियां हैं। बुद्धिप्रधान, ज्ञानप्रधान ही मनुष्य योनि है। मनुष्य योनि भोग और भोजन प्रधान नहीं है। यदि कोई स्त्री पुरुष हीरा देकर सब्जी खरीद लाता है, तो उसे सारे संसार के बुद्धिमान मनुष्य क्या कहते हैं, वो तो आप भी जानते हैं। इसी प्रकार मनुष्य जाति के इस क्षण भंगुर बहुमूल्य दुर्लभ शरीर को पाकर भी यदि कोई स्त्री पुरुष मात्र भोग और भोजन को प्रधान मानते हैं ,और ज्ञान भक्ति के लिए प्रयत्नशील नहीं होते हैं तो समझिए कि उसने बहुमूल्य हीरे से एकसमय की सब्जी खरीदकर खा ली है।
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अज्ञानी स्त्री पुरुषों में तथा पशुओं में थोड़ा सा ही अन्तर है
RAM KUMAR KUSHWAHAJuly 31, 2021
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