आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृंदावन धाम
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
हमारी जरूरत किसी को नहीं है।।
कितने बड़े भ्रम में जीवन गुजारा।
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
(1) यही सच है , थी सब जरूरत हमारी।
समझते रहे हम जरूरत तुम्हारी।।
मगर आज आखें खुलीं इस उमर में,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
(2) पूरी जो की हैं, जरूरत किसी की,
लगा आज सच में गरज थी हमारी।
हम जिसको समझते थे, बेहद जरूरी,
उसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
(3) बहुत कष्ट पाकर, कमाया है थोड़ा।
लुटाकर के सुख और समय कुछ है जोड़ा।।
वो सभी आज देकर के खाली हो बैठे,
उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है।।
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
(4) किसी का नहीं दोष कुछ दिख रहा है।
हमारे ही दोषों का फल दिख रहा है।।
हमें जब जरूरत सभी की पड़ी है,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
(5) बहुत बार गुरुवर ने हमसे कहा था,
तुम्हारे तो जैसे करोड़ों पड़े हैं।।
मगर उस समय तो जवानी चढ़ी थी,
तो सोचा किसी की जरूरत नहीं है।।
वही सच था जो कहते थे मेरे गुरुवर,
किसी को हमारी जरूरत नहीं है।।
हमें तो जरूरत सभी की है लेकिन,
हमारी जरूरत किसी को नहीं है।।
(6) ब्रजपाल अब सब समझ आ गया है,
थी गलती हमारी, समझ ही न पाए।।
मगर अब उन्हें है जरूरत हमारी,
हमें अब किसी की जरूरत नहीं है।।
ये दो रोटियां, कुछ जमीं ही तो चहिए,
हमें और कुछ की जरूरत नहीं है।
किसी को हमारी भले हो जरूरत,
हमें अब किसी की जरूरत नहीं है।।
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